बिलासपुर। हाईकोर्ट के आदेशों का पालन नहीं होने और इसके चलते बढ़ती अवमानना याचिका को देखते हुए गाइडलाइन जारी करने के लिये लगाई गई याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। याचिकाकर्ता को कोर्ट ने मशविरा दिया है कि वे कानून के तहत इस ऐसे मामलों में उपचार ले सकते हैं।

हाईकोर्ट में अधिवक्ता संतोष पांडेय ने एक याचिका दायर कर कहा था कि प्रदेश के अधिकारी हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हैं। पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिये कोर्ट की ओर से दिये गये आदेशों का पालन नहीं करते जिसके चलते उन्हें अवमानना याचिका दायर करने की अनावश्यक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। हाईकोर्ट को ऐसे मामलों में कई बार मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को भी उपस्थित होकर जवाब देने के लिये कहा जाता है। अफसर हाईकोर्ट के आदेशों की खुलेआम अनदेखी कर रहे हैं। हाईकोर्ट में 2015 से दिसंबर 2019 तक अवमानना के 4591 मामले पेश हुए जिनमें से 4124 मामले निराकृत हुये। इस वर्ष 2020 सितंबर में 1350 मामले पेंडिंग हैं। याचिकाकर्ताओं, पीड़ितों को हाईकोर्ट के आदेश से फौरी राहत तो मिल जा रही है, लेकिन इसके आदेशों के पालन में अफसर ध्यान नहीं दे रहे। हाईकोर्ट के आदेशों के पालन किए जाने का कोई निश्चित नियम, गाइडलाइन, मापदंड नहीं होने से अफसरों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पा रही। हाईकोर्ट के ज़्यादातर केसों में राज्य सरकार पक्षकार होती है। सरकारी विभागों में गलत फैसले के खिलाफ याचिकाओं में हाईकोर्ट प्रक्रिया लंबित रहने के दौरान पक्षकार को अंतरिम राहत दे देता है या आदेश पर रोक लगा दी जाती है, लेकिन अफसर जानते हुए भी हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखी कर जाते हैं और प्रशासनिक उच्छृंखलता बढ़ती जा रही है, जबकि अवमानना मामले हाईकोर्ट की दण्डशक्ति और अस्मिता से जुड़ा है।

याचिका में कहा गया कि लंबित मामलों में पिछले 3 वर्षों के मुक़ाबले 63% की वृद्धि हुई। कई मामलों में हाईकोर्ट राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी को भी तलब कर चुका है। इसके बाद भी व्यवस्था में बदलाव नहीं हो पा रहा, क्योंकि अफसरों में हाईकोर्ट के भी आदेशों का डर नहीं रह गया है।

अधिवक्ता संतोष कुमार पांडेय ने याचिका में कहा कि हाईकोर्ट द्वारा अवमानना मामलों के निस्तारण में सावधानी नहीं बरती जा रही है। इसका लाभ अधिकारियों को मिलता है। वे संरक्षित होते हैं और पीड़ित हतोत्साहित होते हैं। अवमानना मामलों में मनमानी न हो, इस के लिए गाइड लाइन जारी की जा सकती है। इसे हाईकोर्ट रूल्स 2007 में जगह दी जा सकती है, ताकि उच्च न्यायालय के सभी आदेशों का क्रियान्वयन समय सीमा के भीतर हो।

पाण्डेय ने 20 जनवरी 2020 को हाईकोर्ट को एक अभ्यावेदन भी दिया था, जिसे रजिस्ट्रार जनरल द्वारा सातवें दिन नस्तीबद्ध कर दिया। अधिवक्ता ने सूचना के अधिकार के तहत दस्तावेज़ निकाल कर उक्त सिविल रिट याचिका पेश की थी, जिसमें भारत संघ, छत्तीसगढ़ शासन और उच्च-न्यायालय को पक्षकार बनाया गया था।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 216 के तहत उच्च-न्यायालय गठित होता है, जिसमें मुख्य न्यायाधीश सहित सभी न्यायाधीश शामिल होते हैं, इसलिए विशेष अभ्यावेदन पर निर्णय रजिस्ट्रार जनरल द्वारा स्वयं नहीं, बल्कि पूर्णपीठ द्वारा लिया जाना चाहिए।

इस याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस पी0सैम कोशी की एकल पीठ ने कहा चूंकि रजिस्ट्रार जनरल और मुख्य-न्यायाधीश ने उक्त अभ्यावेदन नस्तीबद्ध करने का प्रशासनिक निर्णय लिया है याचिका खारिज की जाती है। यदि उक्त आदेश स्वीकार नहीं है, तो वह कानून के तहत उचित उपचारात्मक उपाय करने के लिए स्वतंत्र है।

 

 

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