रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेशवासियों विशेष रूप से किसान भाइयों को पारंपरिक पोला तिहार की बधाई और शुभकामनाएं दी है. इस अवसर पर भूपेश बघेल ने नागरिकों के सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की है. अपने शुभकामना संदेश में उन्होंने कहा है कि पोला तिहार छत्तीसगढ़ की परम्परा, संस्कृति और लोक जीवन की गहराइयों से जुड़ा है. इस त्योहार में उत्साह से बैलों और जाता-पोरा की पूजा कर अच्छी फसल और घर को धन-धान्य से परिपूर्ण होने के लिए प्रार्थना की जाती है. यह त्यौहार हमारे जीवन में खेती-किसानी और पशुधन का महत्व बताता है

भूपेश बघेल ने कहा कि यह पर्व बच्चों को हमारी संस्कृति और परम्पराओं से परिचय कराने का भी अच्छा माध्यम है. घरों में प्रतिमान स्वरूप मिट्टी के बैलों और बर्तनों की पूजा कर बच्चों को खेलने के लिए दिया जाता है,जिससे बच्चे अनजाने ही अपनी मिट्टी और उसके सरोकारों से जुड़ते हैं. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कोविड-19 के प्रकोप को देखते हुए ग्रामीणों और किसान भाइयों से पोला तिहार के मनाने के दौरान मास्क लगाने तथा फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपील की है.

हरेली की तरह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के रायपुर स्थित निवास में पोरा -तीजा का तिहार आज दोपहर 12 बजे से मनाया जाएगा. महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा पोरा-तीजा तिहार के आयोजन को लेकर मुख्यमंत्री निवास में विशेष इंतजाम किया जा रहा है. मुख्यमंत्री निवास परिसर में छत्तीसगढ़ की परम्परा और रीति-रिवाज के अनुसार साज-सज्जा की गई हैं. इस मौके पर नांदिया-बैला की पूजा की जाएगी. तीजा महोत्सव का आयोजन होगा। पोरा -तीजा तिहार के लिए कार्यक्रम में बहनों को आमंत्रित किया गया है.

मुख्यमंत्री निवास में आयोजित कार्यक्रम में एक सेल्फी जोन बनाया गया है, जहां नांदिया बैला के साथ लोग सेल्फी ले सकेंगे. कार्यक्रम में पोरा चुकी, शिवलिंग की पूजा की जाएगी. रइचुली झूला और चकरी झूला भी कार्यक्रम स्थल पर लगाया गया है. इन झूलों का लोग आनंद ले सकेंगे. कोविड -19 के प्रकोप को देखते हुए आयोजन में सीमित संख्या में लोगों को आमंत्रित किया गया है. कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों से मास्क लगाकर आने तथा फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपील की गई है.

छत्तीसगढ़ का पोरा-तिहार मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है. खेती किसानी में बैल और गौवंशीय पशुओं के महत्व को देखते हुए इस दिन उनके प्रति आभार प्रकट करने की परम्परा है. छत्तीसगढ़ के गांवों में बैलों को विशेष रूप से सजाया जाता है. उनकी पूजा-अर्चना की जाती है. घरों में बच्चे मिट्टी से बने नंदीबैल और बर्तनों के खिलौनों से खेलते हैं. घरों में ठेठरी, खुरमी, गुड़-चीला, गुलगुल भजिया जैसे पकवान तैयार किए जाते हैं और उत्सव मनाया जाता है. बैलों की दौड़ भी इस अवसर पर आयोजित की जाती है.

छत्तीसगढ़ में तीजा (हरतालिका तीज) की विशिष्ट परम्परा है, महिलाएं तीजा मनाने ससुराल से मायके आती हैं. तीजा मनाने के लिए बेटियों को पिता या भाई ससुराल से लिवाकर लाते है. छत्तीसगढ़ में तीजा पर्व की इतना अधिक महत्व है कि बुजुर्ग महिलाएं भी इस खास मौके पर मायके आने के लिए उत्सुक रहती हैं. महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए तीजा पर्व के एक दिन पहले करू भात ग्रहण कर निर्जला व्रत रखती हैं. तीजा के दिन बालू से शिव लिंग बनाया जाता है, फूलों का फुलेरा बनाकर साज-सज्जा की जाती है और महिलाएं भजन-कीर्तन कर पूरी रात जागकर शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं.

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