बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में आज दरभा थाने में झीरम घाटी हमले में षड़यंत्र को लेकर दर्ज एफआईआर को सुनवाई जारी रही। एनआईए इस शिकायत की जांच खुद करने के पक्ष में तर्क दिये जबकि उदय मुदलियार की ओर से तर्क रखे गये कि क्यों यह जांच एनआईए को नहीं दी जा सकती।

उच्च न्यायालय की जस्टिस मनीन्द्र श्रीवास्तव और जस्टिस विमला सिंह कपूर की खण्डपीठ में आज एनआईए की उस याचिका की अन्तिम सुनवाई जारी रही, जिसमें एनआईए ने झीरम घाटी हमले पर  बस्तर पुलिस द्वारा की गई दूसरी एफआईआर पर रोक लगाने की मांग की है और षडयंत्र के अन्वेषण की जांच एनआईए को ही करने दिये जाने का अनुरोध किया है। कल हुई बहस के बाद एनआईए की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बेनर्जी ने जगदलपुर एनआईए कोर्ट के अधिकारों के संबंध में शेष बची हुई बहस पूरी की। इसके अनुसार दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 91 और एनआईए एक्ट की धारा 11 से 16 में वर्णित एनआईए कोर्ट के अधिकार नई एफआईआर एनआईए को स्थानांतरित करने के लिये पर्याप्त है।

दरभा थाने में एफआईआर कराने वाले जितेन्द्र मुदलियार, जिनके पिता स्व. उदय मुदलियार झीरम घाटी हमले में शहीद हुये थे, की ओर से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव और संदीप दुबे ने बहस की। खण्डपीठ को यह बताया गया कि सामान्य रूप से अपराधों की जांच का अधिकार राज्य पुलिस को होता है परन्तु एनआईए एक्ट इसका एक अपवाद है और आतंकवादी गतिविधि एवं अन्य संबंधित अपराधों के लिये केन्द्र सरकार की एजेंसी एनआईए को भी जांच सौपी जाती है। चूंकि यह अधिनियम केवल चुनिंदा धाराओं पर लागू होता है, अतः झीरम घाटी हमले के वृहद षड़यंत्र की जांच हेतु दर्ज एफआईआर शेड्यूल ऑफेन्स में नहीं आती। न ही इस एफआईआर को एनआईए को हस्तांतरित करने का कोई आदेश केन्द्र सरकार ने जारी किया है जैसा कि एनआईए एक्ट के प्रावधानों के तहत आवश्यक है। यहां तक कि धारा 8 में वर्णित अन्य अपराध तब ही प्राभावशील होंगे जब दोनों ही एफआईआर में अभियुक्त समान हों। इसके अलावा जगदलपुर एनआईए कोर्ट को नई एफआईआर स्थानांतरित करने का अधिकार भी नहीं है।

आज जितेन्द्र मुदलियार की ओर से बहस पूरी नहीं हुई। कल 17 सितंबर को राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आलोक बख्शी और उपमहाधिवक्ता मतीन सिद्धिकी की बहस के पहले मुदलियार की ओर से शेष बहस की जायेगी। सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार के एएसजी रमाकांत मिश्रा उपस्थित रहे।

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