सन् 2012 में बढ़ाये गये आरक्षण प्रतिशत पर हो सकती है आगे सुनवाई….

बिलासपुर। अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ाने के खिलाफ दायर याचिका विधानसभा में पारित नहीं होने के आधार पर गुरुवार को हाईकोर्ट की डबल बेंच ने निराकृत कर दी। अब छत्तीसगढ़ में 82 प्रतिशत तक की सीमा तक बढ़ाया गया नया आरक्षण आदेश प्रभावी नहीं रह गया है। हालांकि कोर्ट ने कहा है कि राज्य में इसके पहले सन् 2012 में बढ़ाये गये आरक्षण को लेकर अलग से सुनवाई की जा सकती है।

ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बीते 15 अगस्त 2019 को आरक्षण बढ़ाने की घोषणा की थी। इसके बाद चार सितम्बर 2019 को एक अध्यादेश जारी किया गया था जिसके तहत आरक्षण की कुल सीमा बढ़ाकर 82 कर दी गई थी। इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। इसके अलावा 10 प्रतिशत आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए तय किया गया।

इसके खिलाफ कुणाल शुक्ला, आदित्य तिवारी, कीर्तिभूषण पांडेय, विजय तिवारी सहित अनेक लोगों ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं ने पक्ष रखा था कि राज्य शासन का यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना है जिसमें 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं रखने कहा गया है। इस मामले में शासन और याचिकाकर्ताओं की ओर से पक्ष रखे गये थे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पिछड़ा वर्ग के लिए बढ़ाये गये आरक्षण को लागू करने पर स्टे लगा दिया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट में शासन की ओर से बताया गया कि विधानसभा में यह अध्यादेश पारित नहीं कराया गया है।

गुरुवार को जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन और जस्टिस पी.पी. साहू की डबल बेंच ने याचिका को निराकृत करते हुए कहा कि चूंकि अध्यादेश को विधानसभा से पारित कराने के लिए तय छह माह की समय-सीमा समाप्त हो गई है और यह विधानसभा में पारित नहीं कराया गया है अतएव यह अध्यादेश अब प्रभावी नहीं रह गया है। याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट से स्टे मिलने और विधानसभा में अध्यादेश के पारित नहीं होने का लाभ मिला है।

ज्ञात हो कि सन् 2012 में तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 58 प्रतिशत किया गया था, जो अभी प्रदेश में लागू है। यह भी इंदिरा साहनी केस में दिये गये सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने कहा है कि इस मामले पर अलग से सुनवाई की जा सकती है।

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