-प्राण चड्ढा

अचानकमार टाइगर रिजर्व के लमनी छपरवा में आदिवासियों के बीच तीन दशक तक शिक्षा की मशाल जगाये प्रो पीडी खेरा की जीवन ज्योति आज बुझ गई। जीवन के नब्बे वसन्त देख चुके प्रोफेसर पीडी खेरा,बीते कुछ माह पूर्व लमनी में अस्वस्थ होने के बाद बिलासपुर के अपोलो में दाखिल किए गए थे और उनकी तबियत में उतारा-चढ़ाव होता रहा लेकिन आज आखिर क्रूर मौत ने जीवन छीन लिया।
तीन दशक पहले से वे दिल्ली विवि के शोधार्थियों के दल को लेकर अमरकण्टक की वादी में रहने वाले अत्यंत पिछड़ी जनजाति बैगा पर अध्ययन के लिए हर साल आते थे और वह उनके संग ऐसे रमे की सेवानिवृत्त होने के बाद वानप्रस्थी बन कर यहीं के हो गए। वो बैगा आदिवासियों के सच्चे हमदर्द रहे, उनको वहीं मौके पर चिकित्सा उपलब्ध करते। हाट बाजार की अन्नदूत सेवा से जोड़ने सूत्रधार बनते और जंगल के संरक्षक बने रहे।
प्रो खेरा लमनी से रोज बस से छपरवा के स्कूल जाते और अलग-अलग क्लास में अंग्रेजी पढ़ाते, ताकि छात्रों को नौकरी पाने की दौड़ में सहूलियत हो। मेरी उनसे बड़ी पुरानी पहचान रही। चांदनी रात में रेंजर भगत, प्रो खेरा और मैं लमनी बेरियर में साथ बैठ कर चर्चा करते। उनके कांधे पर लटके खादी के झोले में चना मुर्रा भरा रहता, जिसे वह शाम को बच्चों को और रात में भूखे लोगों को बांटते।
वे खादी पहनते थे और पक्के गांधी वादी रहे। उनके सही घर, सम्पति या बैंक बैलेंस का पता मुझे कभी नहीं लगा। लगता पेंशन की राशि से वह जो बना उससे बढ़ कर करते हैं। लमनी में छोटी सी कुटिया कुछ कपड़े और भोजन का सामान, बस यही उनकी पूंजी दिखती। आज के स्वार्थ और नफरत भरी दुनिया में वैसा आदमी भी हो सकता है जिसके जीवन का पल-छिन जंगल में अभाव में जीते वनवासियों के नाम था।
किसी को विश्वास नहीं होता कि अपना सब कुछ त्याग कर कोई व्यक्ति दूजों के लिए जीवन होम कर रहा है। एक बार छपरवा में शालेय छात्रों को पढ़ने के बाद लमनी के लिए बस की प्रतीक्षा एक होटल में रहे थे,तभी कार से मैने देख लिया और हमने उनको बैठा लिया। पर होटल चलाने वाली महिला और वहां के बस के लिये प्रतीक्षारत लोग नारजगी प्रकट करने लगे, कि उनको दिल्ली वाले साहब के सानिध्य से क्यों वंचित कर दिया।
उनकी निःस्वार्थ सेवा पर भी उंगली उठती। एक बार अमरकंटक के किसी साधु ने मुझसे कहा- मुझे तो यह नक्सली लगता है। मुझे बड़ा दुख हुआ, पर मैने जबाव दिया,’आप जैसे लोगों के वचनों के कारण ही सीता-माता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी होगी। वह बहुत शर्मिंदा हुए। उन्होंने मुझसे वचन लिया कि कभी इस किस्से को उनके नाम से नहीं जोड़ना।
आदमी की उम्र तय है,जो जन्म लेता है उसको जाना होता है। उनको श्रद्धा से पितृ पक्ष में स्मरण किया जाता है। जब जब पितृपक्ष आयेगा, आदिवासियों के पिता तुल्य प्रो पीडी खेरा को वे और हम श्रद्धा सुमन अर्पित करते रहेंगे।

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