राजस्थान के बाद दूसरा राज्य, गहलोत ने सोनिया गांधी से भी की थी शिकायत

नई दिल्ली। महाराष्ट्र ने कोयला मंत्रालय को पत्र लिखकर मांग की है कि वह छत्तीसगढ़ में स्थित उनके कोल ब्लॉक को राज्य सरकार की क्लीयरेंस देने के लिये हस्तक्षेप करें। इसके साथ ही तीसरे सबसे बड़े कोयला भंडार वाले राज्य छत्तीसगढ़ में कोयला खनन की बाधाओं को दूर करने की केंद्र से मांग करने वाला महाराष्ट्र दूसरा राज्य बन गया है। इसके पहले राजस्थान भी यही मांग कर चुका है। हसदेव क्षेत्र के इन खदानों को खोलने का छत्तीसगढ़ में भारी विरोध हो रहा है।

महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी (महाजेनको) के महाप्रबंधक संजय खंडारे ने कोयला सचिव अनिल जैन को पिछले सप्ताह लिखे गये पत्र में कहा है कि वन उपयोगिता की शर्तों को उसने अक्टूबर 2021 में पूरा कर दिया था। वह तमनार में प्रस्तावित गारे पाल्मा के द्वितीय कोल ब्लॉक के लिये डायवर्सन की शर्तों को पूरा कर चुकी है। पर छत्तीसगढ़ सरकार ने अभी तक स्टेज-1 की मंजूरी के ले भी केंद्र को अपनी सिफारिश नहीं भेजा है। खंडारे ने इस मामले में कोयला मंत्रालय से हस्तक्षेप की मांग की है। पत्र में कहा गया है कि उक्त खदान को प्रारंभ करने की समय सीमा अक्टूबर 2023 है। छत्तीसगढ़ में आबंटित अन्य राज्यों के लिये कोयला खदानों को जल्द प्रारंभ करने का यह दूसरा मामला है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पहले ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कोयला खदान के लिये आवश्यक मंजूरी देने के लिये पत्र लिखा था। इसे अनसुना किये जाने के बाद उन्होंने पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी शिकायत की थी। राजस्थान ने अपने राज्य के विद्युत संयंत्रों में आपूर्ति के लिये हसदेव क्षेत्र में कोयला खदान आवंटित करा रखा है, जिसकी ग्राम सभा से मंजूरी नहीं मिल रही है। ग्रामीण इसके विरोध में हैं। अभी परसा ब्लॉक के प्रथम चरण से कोयला निकालने का काम राजस्थान सरकार ने अडानी ग्रुप को दे रखा है।

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में बिजली संयंत्रों का सबसे बड़ा उत्पादन परिसर कोराड़ी चंद्रपुर-8 स्थित है। इसमें कोयला आपूर्ति के लिये अगस्त 2015 में महाजेनको को गारे पाल्मा द्वितीय ब्लॉक का आवंटन किया गया था। इस कोल ब्लॉक की उत्पादन क्षमता 23 मिलियन टन से अधिक है।

महाजेनको ने सन् 2016 में 214 हेक्टेयर वन भूमि के लिये आवेदन किया था लेकिन उसके एवज में किये जाने वाले अनिवार्य पौधारोपण के लिये सरकारी भूमि उपलब्ध नहीं हो पाई थी। इसके बाद खदान की सीमा में संशोधन किया गया। महाजेनको ने शर्त के मुताबिक पौधारोपण के लिये निजी भूमि भी अधिग्रहित की और इसका विवरण छत्तीसगढ़ के वन विभाग के अधिकारियों को प्रस्तुत किया। जिला स्तर के अधिकारियों ने डायवर्सन के प्रस्ताव को मंजूरी दे थी लेकिन राज्य सरकार ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को स्टेज 1 की मंजूरी के लिये सिफारिश नहीं की है।

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