कोण्डागांव। कुम्हार अशोक चक्रधारी अपनी खास कला के माध्यम से जाने जाते है. उनकी बनाई चीज से प्रभावित होकर केन्द्रीय वस्त्र मंत्रालय ने भी इन्हें नेशनल मेरिट प्रशस्ति अवार्ड पत्र व 75 हजार रुपये देकर सम्मानित किया है. अशोक महज चौथी क्लास तक पढ़े है, लेकिन उनकी कला हर  बार मेरिट में आने वाले छात्र की तरह दिखाई पड़ती है. अशोक ने 35 साल पहले एक दीया देखा उसी को ध्यान में रख एक ऐसा दीया बनाया है जो 24 से 40 घंटे तक जलता है.

उन्होंने बताया कि 35 वर्ष पूर्व प्रदेश की तत्कालीन राजधानी भोपाल में अंबिकापुर के एक वृद्ध कलाकार ने एक प्रर्दशनी में ऐसा ही कुछ बनाया था. जो मुझे 35 साल बार कुछ अलग करने की ओर लेकर गया. इस दिपावली पर मैं कुछ अलग करने की सोच से इसे बनाने में लग गया. मैं इसे लगातार बनाता रहा मगर सफलता नहीं मिल रही थी फिर बार-बार बनाने के बाद आखिर में मुझे सफलता मिल ही गई.

तेल कम होने पर ही रिसाव होता है

यह दीया दूसरों से अलग है. पहले मिट्टी से दीया तैयार करते है, फिर एक गुंबद में तेल भर कर दीये के ऊपर पलटकर रख देते है. इस गुबंद की टोटी से तेल बूंद-बूंद कर टपकता रहता है. दीये का तेल जैसे ही खत्म होता है तो अपने आप टोटी से तेल टपकता है. जैसे ही तेल दीया में भर जाता है, तो तेल का रिसाव बंद हो जाता है. तेल कम होने पर ही दीये में तेल का रिसाव होता है. यह सारा काम टोटी में वायु के दबाव से होता है. टोटी में वायु के लिये रास्ता अलग से बना हुआ है. इस विधि को साईफन विधि कहा जात है.

क्षेत्र के लोगों को दिलाई पहचान

अशोक कच्ची मिट्टी को आकार देकर बोलती तस्वीर और जींवत मूर्तियां तैयार करते हैं. मिट्टी की मूर्तियां दैनिक उपयोग की वस्तु सजावटी सामान का निर्माण करते हुए वो वर्षों से क्षेत्र के लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करवा रहे है. वह अपनी क्षेत्रीय संस्कृति को नक्सलप्रभावित जिला होने के बाद भी दुनियाभर के लोगों तक पहुंचा रहे है. अपनी मिट्टी की कलाकारी के जरिए ही देश-दुनिया में अपनी पहचान बनाई है.

मिट्टी की वस्तु का उपयोग न होने से जीवन संकट में

अशोक का कहना हैं कि समय के साथ लोग कुम्हारों के बनाये मिट्टी की जगह प्लास्टिक व अन्य दूसरी वस्तुओं का उपयोग करने लगे है. जिससे हम जैसे कुम्हारों के आगे जीवन में सकंट गहरा रहा है. इस लिए भी कुछ अलग करने की कोशिश किये जा रहे है. अशोक ने मीडिया के माध्यम से एक अपील भी की हैं कि लोग कुम्हारों के बनाये समान उपयोग में लाए ताकि ये कलाकृतियां जींवत रहे

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here