बिलासपुर। हाट-बाजार व मेलों में जा जाकर प्लास्टिक और ढोलक बेचकर आजीविका चलाने वाले मध्यप्रदेश के महिलाओं, बच्चों सहित 24 मजदूरों का परिवार कोटा के अग्रसेन भवन में फंसा हुआ है। वे अपने घर लौटने के लिए परेशान हैं लेकिन कहीं से मदद नहीं मिल पा रही है। उनके पास जाने का खर्च उठाने के लिए भी पैसे नहीं हैं।

ये आदिवासी मध्यप्रदेश के सागर जिले के खुरई तहसील के रहने वाले हैं। 23 मार्च को भोपाल-बिलासपुर पैसेंजर से ये लोग करगीरोड स्टेशन पर उतरे। कुछ दिन कोटा में रहकर ये लोग भोरमदेव मेले में सामान बेचने के लिये जाने वाले थे। स्टेशन पर उतरने के बाद उन्हें पता चला कि लॉकडाउन लगा दिया है। ट्रेन बस सेवाएं सब बंद कर दी गई है। ये वहीं स्टेशन के एक छोर में डेरा डालकर रहने लगे। लेकिन लॉकडाउन में की गई सख्ती के कारण उन्हें यह जगह छोड़नी पड़ी। तब ये स्टेशन से कुछ दूर तम्बू लगाकर रहने लगे। जब लोगों को घरों से निकलने पर रोका गया तो इनका भी तम्बू पुलिस को हटाना पड़ा और स्थानीय नगर पंचायत की मदद से इन्हें लाकर अग्रसेन भवन में छोड़ दिया गया। तब से अब तक सब यहीं रुके हुए हैं। इन्हें क्वारांटीन पर नहीं रखा गया है और न ही कैद में हैं पर अग्रसेन भवन में रुके रहना इनकी मजबूरी है। इन्हें नगर पंचायत और अग्रवाल समाज की ओर से राशन लाकर दिया जा रहा है पर जरूरी दूसरे खर्चों के लिए इनके पास पैसे नहीं हैं। अब जब सरकार ने दूसरे राज्यों से मजदूरों को आने-जाने की छूट दे दी है तब भी वे यहीं रुके रहने के लिए मजबूर हैं। इनके मुखिया माखन गोंड का कहना है कि उनके पास अपने घर पहुंचने के लिए पैसे नहीं हैं। नगर पंचायत और अग्रवाल समाज की ओर से भोजन आदि की मदद मिल रही है पर वे भी कब तक करेंगे? हम सब लोगों का आधा परिवार खुरई सागर में हैं। वहां बूढ़े मां-बाप उनके पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं, पर जा नहीं पा रहे हैं। माखन का कहना है कि कोई हम 24 लोगों को पंडरिया के रास्ते मध्यप्रदेश की सीमा पर छोड़ दे तो हम उधर से जाने का कोई न कोई बंदोबस्त कर लेंगे। अपने राज्य में सरकार से भी घर तक जाने की मदद मिलने की उम्मीद है। पर यहां फंसे हुए हैं।

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