गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय में दो दिवसीय अंतरिक्ष प्रदर्शनी का उद्घाटन, समापन आज

बिलासपुर। गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय डॉ. विक्रम साराभाई जन्म शताब्दी वर्ष कार्यक्रम का उद्घाटन समारोह 16 दिसम्बर को सुबह 10.30 बजे रजत जयंती समारोह में आयोजित किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. प्रकाश चौहान, निदेशक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिग, इसरो, देहरादून थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की  कुलपति प्रो. अंजिला गुप्ता ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. राजश्री बोथेल, महाप्रबंधक, आऊटरीच फेसिलिटी, एनआरएससी, हैदराबाद एवं डॉ. संजय अलंग जिलाधीश, उपस्थित थे।

इस मौके पर मुख्य अतिथि डॉ. प्रकाश चौहान ने कहा कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक, देश के महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई की प्रतिभा एवं कार्य को याद करने के लिए उनकी जन्म शताब्दी पर कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। आज भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में अग्रणी देश के रूप में उभर रहा है। विश्व में अंतरिक्ष की पांच बड़ी ताकतें हैं, जिनमें से एक भारत है। इसी साल इसरो की स्थापना के भी 50 साल पूरे हो रहे हैं। जीएसएलवी, पीएसएलवी सहित विभिन्न राकेटों की लांचिग कर इतिहास रचने के लिए इसरो को जाना जाता है। इन बुलंदियों की बुनियाद रखने के लिए डॉ. साराभाई के जीवन देश के युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है।

उद्योगपति अम्बालाल साराभाई के घर जन्म लेने के बाद भी उनमें विज्ञान व तकनीक के प्रति अटूट लगाव था। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद भौतिकी की पढ़ाई के लिए वे कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, यू0के0 गए। वहां उन्होंने मास्मिक किरणों पर शोध किया। भारत लौटने के बाद उन्होंने 28 वर्ष की उम्र में अहमदाबाद में भौतिकी शोध प्रयोगशाला की स्थापना की। इसके बाद सन् 1969 में इसरो की स्थापना की। आईआईएम अहमदाबाद उन्हीं की देन है। जब रूस ने पहला कृत्रिम उपग्रह स्पूतनिक लांच किया, तो उससे प्रेरित होकर भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रारम्भ किया। एक विकासशील देश के लिए अंतरिक्ष कार्यक्रम की महत्ता और आवश्यकता महसूस करते हुए उन्होंने इसरो की स्थापना की। वे किसी देश से प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहते थे। उनका उद्देश्य अंतरिक्ष कार्यक्रमों के माध्यम से भारत के सामान्य लोगों की जीवन शैली में गुणवत्ता लाना था। आज हम रॉकेट लांच करने में आत्मनिर्भर हैं। उपग्रह छोड़ने में समर्थ हैं, मंगल ग्रह तक पहुंच चुके हैं। यह सब डॉ. विक्रम साराभाई के प्रयासों का ही प्रतिफल है। 52 साल की अल्पायु में ही उन्होंने इसरो, आईआईएम, स्पेस एप्लीकेशन सेंटर सहित विभिन्न संस्थानों की स्थापना की । वे एक वैज्ञानिक, उद्योगपति, कला प्रेमी एवं संस्थान निर्माता थे। उनके योगदान को भारत भुला नहीं सकेगा। युवाओं के लिए वे हमेशा प्रेरणास्त्रोत रहेंगे। डॉ. चौहान ने कहा कि कुलपति प्रो. गुप्ता की व्यक्तिगत रूचि से यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित किया जा रहा है।

प्रदर्शनी का आयोजन छात्रों के लिए उपयोगी- प्रो.गुप्ता 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. गुप्ता ने कहा कि इस आयोजन का होना विश्वविद्यालय के लिए गर्व का विषय है। यहां लगाई गई प्रदर्शनी व मॉडल्स न केवल विश्वविद्यालय बल्कि स्कूल के विभिन्न छात्रों के लिए रुचिकर एवं उपयोगी है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में डॉ. विक्रम साराभाई द्वारा किया गया कार्य अनूठा है। इसीलिए उन्हें भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। प्राचीन इतिहास देखें तो यहां के ऋषि मुनियों ने पृथ्वी से विभिन्न ग्रहों की दूरी की गणना कर ली थी जो लगभग सही है। यहां लगाई गई रॉकेट लॉन्चर व अन्य मॉडल्स की प्रदर्शनी से छात्र प्रेरणा लेंगे एवं उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होगा।

कुआं प्यासे के पास आया है, लाभ उठाएं-डॉ. अलंग

विशिष्ट अतिथि डॉ. अलंग ने कहा कि यह मस्ती हमेशा बनी रहनी चाहिए। यह आयोजन छात्र-छात्राओं के लिए है। उन्होंने कहा कि एनआरएससी की महाप्रबंधक डॉ. राजश्री बोथले छत्तीसगढ़ की रहने वाली हैं। यहीं से पढ़कर वे वैज्ञानिक पद तक पहुंची है। मेरी कल्पना है कि भविष्य में आप भी मंच पर बैठें। यह गर्व का क्षण है कि हम अपने देश के रीयल हीरो डॉ. विक्रम साराभाई का जन्म शताब्दी वर्ष मना रहे हैं। उन्होंने जो भी हासिल किया, पढ़ाई के माध्यम से। छात्रों के लिए पढ़ने से बढ़ कर कुछ भी नहीं है, खासकर मध्यम वर्ग के छात्रों के लिए।

जन्म शताब्दी वर्ष पर आयोजित कार्यक्रम पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमेशा प्यासा कुआं के पास आता है। आज कुआं प्यासे के पास है। आज रॉकेट आप की दहलीज पर है। चांद जो अब तक कविताओं में पढ़ते थे, आपके समान है। इसरो के निदेशक आज यहां व्याख्यान दे रहे हैं। देश के कितने विद्यार्थियों को उन्हें सुनने का अवसर मिल पाता है। उन्होंने छात्रों से कहा कि वे जिज्ञासु बनें। छात्रों में प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति होनी चाहिए। पेन पकड़ कर लिखने से ज्ञान नहीं आता। ज्ञान को कौशल में बदलने के लिए अभ्यास जरूरी है।

देश के सौ स्थानों पर होंगे कार्यक्रम-डॉ. बोथले

विशिष्ट अतिथि डॉ. राजश्री बोथले ने इसरो के विभिन्न अंतरिक्ष कार्यक्रमों की जानकारी देते हुए कहा कि डॉ. विक्रम साराभाई जन्म शताब्दी वर्ष पर दिनांक 12 अगस्त, 2019 से विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। 12 अगस्त, 2020 तक देश के चयनित सौ स्थानों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केन्द्र, हैदराबाद को आठ स्थानों पर कार्यक्रम करने के लिए कहा गया है। इसमें से 6 स्थान तेलंगाना राज्य के है। छत्तीसगढ़ में यह पांचवां कार्यक्रम है, जो गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में आयोजित किया जा रहा है। यह छत्तीसगढ़ में पहला कार्यक्रम है। यहां आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम में अंतरिक्ष प्रर्दशनी, डॉ. विक्रम साराभाई स्मृति व्याख्यान, स्पेस आन व्हील्स, राकेट वाटर लांचर सहित विभिन्न मॉडल्स की प्रर्दशनी एवं विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा।

कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. एम. सी. राव ने स्वागत भाषण में कहा कि इस कार्यक्रम को लेकर विश्वविद्यालय एवं विभिन्न स्कूलों से आये छात्रों में काफी उत्साह है। कुलसचिव प्रो. शैलेन्द्र कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

कार्यक्रम का संचालन वानिकी, वन्य जीव एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. गरिमा तिवारी ने किया। कार्यक्रम में इसरो के वैज्ञानिक, सीजीकॉस्ट के वैज्ञानिक व अधिकारी, विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी, छात्र एवं जिले के विभिन्न स्कूलों के छात्र काफी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम प्रारंभ होने से पहले अतिथियों ने स्पेस ऑन व्हील्स, वाटर रॉकेट लॉन्चर, सेल्फी कॉर्नर एवं विभिन्न मॉडलों का अवलोकन किया। जिले की विभिन्न स्कूलों से पहुंचे सैकड़ों छात्र भी अंतरिक्ष विज्ञान प्रदर्शनी को देखकर काफी उत्साहित एवं रोमांचित थे।

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