बिलासपुर। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई में विस्तार लाने के लिए उच्च-न्यायालयों को अनेक शक्तियां दी हैं और इसके पालन के लिए राज्यों को पीठासीन अधिकारी नियुक्त कर एनआईसी के समन्वय से तौर-तरीके स्थापित करने का निर्देश दिया है। वर्तमान में कोविड-19 महामारी के चलते वीडियो कांफ्रेंसिग की जो व्यवस्था की गई है उसे बाद में भी जारी रखने और कोर्ट के कामकाज को अधिक से अधिक डिजिटल बनाने के लिए भी दिशानिर्देश सर्वोच्च न्यायालय ने जारी किया है ।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालतों के कामकाज के लिए स्वत: संज्ञान लेकर शुरु किए मामले में विभिन्न दिशा-निर्देश पारित किए।

मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने निर्देश दिया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के तौर-तरीकों को स्थापित करने के लिए राज्य उच्च न्यायालयों के साथ संपर्क करने और सहयोग करने के लिए एनआईसी और राज्य के अधिकारियों को नियुक्त किया जाए। पीठ ने टेकनालॉजी फ्रेंडली और व्यवहार्य विकल्पों को लागू करने की आवश्यकता भी बताई, जो न केवल लॉकडाउन के दौरान, बल्कि बाद में भी जारी रहें।

यह कहते हुए कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और इसके तौर-तरीके नियम कानून को सुनिश्चित करने और संविधान को संरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि कोविड-19 महामारी के प्रकाश में सोशल डिस्टेंसिंग को लागू करना महत्वपूर्ण है।

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा कि सामाजिक दूरियां करने के दिशा-निर्देशों और सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक स्वास्थ्य दिशानिर्देशों के लिए उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा सभी उपाय किए जाएंगे। उच्च न्यायालयों को सामाजिक दूरी के लिए उपायों को नियुक्त करने के लिए अधिकृत किया जाता है।

मुख्य न्यायाधीश बेंच ने निम्नलिखित निर्देश दिए हैं-

  • न्यायालय के पास दूरियां बनाए रखने के लिए अदालत कक्ष में प्रवेश को प्रतिबंधित करने की शक्ति होगी।
  • कोई भी पीठासीन अधिकारी मामले में किसी पक्षकार के प्रवेश को प्रतिबंधित नहीं करेगा जब तक कि किसी को कोई स्वास्थ्य समस्या ना हो।
  • वीडियोकांफ्रेंसिंग गुणवत्ता पर कोई भी शिकायत सुनवाई के दौरान या उसके तुरंत बाद की जानी चाहिए। बाद में कोई शिकायत नहीं की जा सकती है।
  • जिला अदालतें संबंधित हाईकोर्ट के नियमों के अनुसार वीडियो कांफ्रेंसिंग को अपनाएं और जब तक कि हाईकोर्ट नियम नहीं हैं, तब तक कोई सबूत दर्ज नहीं किया जा सकता जब तक कि दोनों पक्षों द्वारा सहमति नहीं दी जाती है।
  • पीठासीन अधिकारी अदालत कक्ष में प्रवेश पर रोक लगा सकते हैं, सभा को प्रतिबंधित करने की शक्ति भी उनको है।
  • उन पक्षकारों के लिए उपयुक्त व्यवस्था की जाए जो वीडियोकांफ्रेंसिंग सुविधाओं तक पहुंच नहीं सकते, जब तक कि उचित नियमों को हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित नहीं किया जाता है, वीडियो कांफ्रेंसिंग का उपयोग किया जाएगा।
  • सभी अदालतों में सुनवाई के दौरान और तुरंत बाद वीडियो फ़ीड और लाइन के बारे में शिकायतों के लिए हेल्पलाइन बनाई जाए।

सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने एक कुशल प्रणाली की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जिसे देश भर के वकीलों द्वारा इस्तेमाल किया जा सके। उन्होंने कहा-हमें केवल तब तक नहीं रुकना चाहिए जब तक कोविड-19 हो। लॉकडाउन के बाद भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जारी रखने की आवश्यकता है।

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति के प्रमुख न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत की सुनवाई पर सभी उच्च न्यायालयों का प्रतिनिधित्व करने वाले न्यायाधीशों की बैठक की थी। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने उन उपायों की समीक्षा की जो उच्च न्यायालयों ने अपने अधिकार क्षेत्र में शुरू किए हैं। 24 मार्च को 21-दिवसीय लॉकडाउन की घोषणा के बाद, सुप्रीम कोर्ट वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जरूरी मामलों की सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर लॉकडाउन के बाद भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा प्रदान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट नियमों में संशोधन की मांग की थी।

सुप्रीम कोर्ट के आज के निर्णय का उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संदीप दुबे, राजेश केशरवानी, बादशाह सिंह, सुशोभित सिंह आदि  ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय न्यायायिक इतिहास मे डिजिटल कोर्ट की दिशा में काफी आगे बढ़ने वाला कदम साबित होगा।

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