मोपका स्थित गीतादेवी रामचंद्र अग्रवाल दिव्यांग अस्पताल व अनुसंधान सेवा केन्द्र के उद्घाटन अवसर चल रहे रामकथा में कथावाचक पंडित अतुल कृष्ण भारद्धाज ने परशुराम संवाद व श्री राम सीता विवाह के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान कण-कण में विराजमान हैं।  दीन दुखियों की सेवा और उनके कष्टों को दूर करना ही भगवान की सेवा है।

अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद के इस आयोजन में कथावाचक अतुल कृष्ण ने कहा जब विश्वामित्र ने सम्पूर्ण उत्तर भारत को दुष्टजनों से श्रीराम द्धारा मुक्त करा लिया व सभी ऋषि वैज्ञानिकों के यज्ञ सुचारू रूप से होने लगे तो विश्वामित्र श्रीराम को जनकपुरी की ओर ले गए, जहां सीता स्वयंवर चल रहा था। सीता स्वयंवर में जब कोई राजा धनुष को तोड़ नहीं पा रहा था तो श्रीराम ने विश्वामित्र की आज्ञा से धनुष को तोड़ दिया।

इसका अर्थ पूरे विश्व में दुष्टों को सावधान करना था कि अब चाहे कोई भी कितना भी शक्तिशाली व शैतान प्रवृत्ति का हो वह जीवित नहीं बचेगा। धनुष टूटने का पता चलने पर परशुराम का स्वयंवर सभा में आना व श्री राम लक्ष्मण से तर्क वितर्क करके संतुष्ट हो गए कि श्रीराम पूरे विश्व का कल्याण करने में सक्षम हैं। वे स्वयं अपने आराध्य के प्रति भक्ति में लीन हो गए व समाज की जिम्मेदारी जो परशुराम ने ले रखी थी। परशुराम ने वह सामाजिक जिम्मेदारी श्रीराम को सौंप दी और स्वयं राम की भक्ति में लीन हो गए।

उन्होने बताया कि भगवान कण-कण में विराजमान है जिस प्रकार श्रीराम ने समाज में दीन दुखियों वनवासियों, आदिवासियों के कष्ट को दूर करते हुए संगठित किया। उसी संगठित शक्ति के द्धारा आज भी समाज में व्याप्त बुराइयों को अच्छे लोग संगठित होकर दूर कर सकते हैं।

 

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