बारनवापारा में इससे ज्यादा सुविधाएं और वन्यजीव, लेपर्ड के लिए भी अनुकूल

-प्राण चड्ढा
जंगल, नदी नालों से परिपूर्ण छतीसगढ़ में धीरे धीरे पर्यटन बढ़ रहा है पर फिलहाल यह अचानकमार टाइगर रिजर्व और बारनवापारा अभ्यारण्य तक सिमटा है। वन्यजीव दर्शन की बात करें तो अचानकमार टाइगर रिजर्व एरिया में दो गुना होने के बाद भी बलौदाबाजार के बारनवापारा से बहुत पीछे चल रहा है।
अचानकमार में सब मिलाकर जिप्सी सफारी की दर 3500 रुपये है लेकिन बारनवापारा में 1600 से भी कम। वहीं अचानकमार के कोर जोन में सफारी की जा सकती है, जबकि बारनवापारा अभ्यारण्य में बफर जोन सफारी के लिए खुला है। फिर भी वन्यजीव अचानकमार में उतने नहीं दिखते, जितने बारनवापारा में। अचानकमार के साथ टाइगर रिजर्व टैग है, पर साल में एक दो बार भी सफारी में टाइगर दिखा तो वह जश्न का दिन समझा जाता है। बार नवापारा में टाइगर नहीं हैं। पर वहां लेपर्ड (तेंदुआ) अचानकमार से अधिक दिखता है। बेहतर हो बारनवापारा की लेपर्ड अभ्यारण्य घोषित कर दिया जाए।
बार मे अब ब्लैक बक भी सफारी में दिखने लगे हैं, जो छत्तीसगढ़ में अन्यत्र नहीं दिखते हैं। इसके अलावा नीलगाय और भेड़िये भी बार नवापारा में दिखते हैं। यहां भेड़ियों को बचाने और बढ़ाने का कोई प्रोजेक्ट शुरू करने में विलंब नहीं करना चाहिए।
जंगली पक्षियां बारनवापारा में काफी हैं। भारतीय मोर, टर्टल डव, हरियल की संख्या तो साफ-साफ अधिक दिखती है।
बारनवापारा में वन्यजीव भयभीत नहीं दिखते। हाथी यहां डेरा जमाए हैं, जिससे शिकारी रात में नहीं घुसते। ऐसा माना जाता है कि हाथी की मौजूदगी स्वस्थ जंगल की पहचान है। भालू तो बार में सफारी के दौरान दिखना कोई बड़ी बात ही नहीं है।
अचानकमार में सोन कुत्ते हैं, पर बारनवापारा में अब नहीं हैं। इसका लाभ यह हुआ कि चीतल की संख्या यहां अचानकमार में अधिक लगती है।
अचानकमार को लेकर यह आम शिकायत है कि अफसर यहां नहीं रहते। इस वजह से जंगल पर उनकी पकड़ कम है। इस जंगल में गौर और गांव वालों की मवेशियों की भरमार है। यहां कुछ गांव वाले अघोषित डेयरी चला रहे हैं। दूध और मावा से यह धंधा पनप रहा है।
पर्यटकों को जंगल ले जाने की लिए सात जिप्सी तो दो केंटर अचानकमार में हैं, जबकि बारनवापारा में लगभग तीस जिप्सी हैं। यहां कोर में जिप्सी को पर्यटकों का टोटा है जिसे अफसर समझ नहीं पा रहे। जब यहां कोर में अवकाश के दिन ही जिप्सी की सफारी हो पाती है और वन्यजीव नहीं दिखने का फ़ीड बैक आ रहा है तो बफर में सफारी के लिए टूरिस्ट कैसे मिल सकते हैं?
बारनवापारा में जल प्रबंधन बहुत बेहतर है। यहां तालाबों में सालभर पानी रहता है। अन्य जल स्त्रोत भी प्रबल हैं। अचानकमार में इतने तालाब नहीं। पानी के लिए छोटे जल कुंड (सॉसर) निर्माण करने के दौरान यह ध्यान नहीं कि जहां नदी है, उसके किनारे कुंड निर्माण का कोई औचित्य नहीं। आकार में भी ये छोटे हैं। शीत ऋतु के चलते अभी वक्त है। अचानकमार में वाटर मैनेजमेंट को और पुख्ता किया जा सकता है, ताकि गर्मी में जलदा के तालाब में प्यासे वन्य जीवों का जमावड़ा न लगे। बाइसन का कब्जा यहां के जलस्त्रोत पर हो जाता है और चीतल बेबसी से उनके जाने का इंतजार करते हैं। सैलानियों के लिये बारनवापारा में पर्यटक गांव बना दिए गए हैं। हर जेब के अनुरूप यहां रात्रि विश्राम किया जा सकता है। अचानकमार में यह व्यवस्था पार्क के मुहाने शिवतराई में है, जहां दर अधिक है और जिप्सी भी 10 किमी दूर अचानकमार से शुरू हो होती है।
मुख्यमंत्री और वन मंत्री किसी विश्वस्त को भेजकर उक्त तथ्यों का सत्यापन करा सकते हैं। व्यवस्था में सुधार करने में थोड़ा सा समय दें। वन छतीसगढ़ में हैं और वन्यजीव देखने के लिए लोगों को पड़ोसी राज्यों में जाने की नौबत क्यों आती है?

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