चीफ जस्टिस की डबल बेंच में सुनवाई, राज्य सरकार से भी मांगा जवाब

बिलासपुर । प्रदेश के वकीलों द्वारा आर्थिक सहायता की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने आज छत्तीसगढ़ स्टेट बार कौंसिल को अधिवक्ता कल्याण समिति के साथ बैठक कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये कहा है।

कोरोना महामारी के बाद से ठप अदालती कामकाज के कारण अधिवक्ताओं को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। इसे लेकर अधिवक्ता राजेश केशरवानी व आनंद मोहन तिवारी की याचिकाओं पर आज चीफ जस्टिस पी.आर. रामचंद्र मेनन और जस्टिस पी.पी. साहू की डबल बेंच में आगे की सुनवाई हुई।

कोर्ट ने जानना चाहा कि बार कौंसिल की फिक्स डिपॉजिट से 20 प्रतिशत राशि राहत के लिये जारी करने के उनके आदेश के परिपालन में क्या किया गया है। कौंसिल की ओर से बताया गया कि 6 जुलाई से हाईकोर्ट के बंद होने के कारण वे फिक्स डिपॉजिट से राशि नहीं निकाल सके हालांकि 300 और वकीलों को सहायता दी गई है।

याचिकाकर्ता के वकील संदीप दुबे ने न्यायालय को अवगत कराया कि स्टेट बार कौंसिल ने अभी तक अधिवक्ता कल्याण समिति के साथ बैठक कर राशि आवंटित करने पर सहमति नही दी है। वकीलों द्वारा इस फंड में करीब चार करोड़ रुपये जमा है। अधिवक्ता कल्याण अधिनियम 1982 की धारा 15 के अनुसार ऐसे संकट के समय में वकीलों की मदद करना है। इसके लिये ट्रस्ट कमेटी के साथ मिलकर बार कौंसिल को नियम भी बनाया है पर राज्य बनने के 20 साल बाद भी अब तक नियम नहीं बनाये गये हैं। बार कौंसिल द्वारा बिना नियम बनाये ही चार माह से पैसे दिये जा रहे हैं। बार कौंसिल की ट्रस्टी कमेटी के चेयरमेन विधि मंत्री तथा सदस्य सचिव प्रदेश के विधि सचिव होते हैं। बार कौंसिल के सदस्य ट्रस्टी होते हैं। उन्होंने न तो ट्रस्टी कमेटी को पैसा जारी करने कहा बल्कि बार एसोसियेशन से पूछना जरूरी समझा, जबकि ट्रस्ट में जमा राशि बार के सदस्यों की ही है। यह राहत पहुंचाने में देरी का तरीका है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता आनंद मोहन ने कहा कि उन्होंने जो योजना बनाकर बार कौंसिल व अधिवक्ता कल्याण कमेटी को दी है उसे भी देखा जाये।

सुनवाई के पश्चात कोर्ट ने निर्देश दिया कि बार कौंसिल दो सप्ताह के भीतर ट्रस्टी कमेटी के साथ बैठककर अधिवक्ता कल्याण अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत नियम बनाये साथ ही याचिकाकर्ताओं के सुझावों पर गौर करे। इस बारे में राज्य सरकार से भी जवाब मांगा गया है।

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