रायपुर, 5 जुलाई। पं माधवराव सप्रे जयंती 150 वर्ष के समारोह की श्रृंखला में पं स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जयंती पर हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार विजय बहादुर सिंह ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभ्य समाज की पहचान है। आज साहित्य और पत्रकारिता में मूल्यों का संकट है जो अभिव्यक्ति को प्रभावित करती है। गूगल मीट पर पब्लिक रिलेशन सोसायटी आफ इंडिया और छत्तीसगढ़ मित्र परिवार द्वारा‌ पं स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी की 101 वीं जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता आलोचक कवि विजय बहादुर सिंह ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मूल्यों का संकट विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति का संकट रहीम के समय से है। आजादी के दिन देश तो अवश्य आजाद हुआ लेकिन भारतीय मानसिक रूप से गुलाम हो गया है। उन्होंने दुष्यंत कुमार के संस्मरण का उदाहरण दिया और आपातकाल के समय की अभिव्यक्ति के संकट का महत्व बताया। भारत में नौकरशाही ने अभिव्यक्ति के संकट को बढ़ाया है। अभिव्यक्ति का संकट उसके मूल में है। आज मुख्य मुद्दा समाज से गायब रहता है। उन्होंने तुलसी दास का भी संदर्भ दिए। अभिव्यक्ति अपने समय का सत्य है। यदि आप अपने समय से बचते हैं और उसे अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे हैं तो आप अन्याय कर रहे हैं। पत्रकारिता और साहित्य पर आज मूल्यों का संकट है। पत्रकारिता अपने समय  के सच से मुकर रहा है। साहित्य इस कमी को पूरा रहा है। साहित्य सब का सच है वह लोक का सच  है। समारोह के अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बल्देव भाई शर्मा ने कहा कि पं माधवराव सप्रे और पं स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जैसे पत्रकारों और साहित्यकारों ने आदर्श की स्थापना की थी। अच्छा साहित्यकार और पत्रकार बनने की पहली शर्त है अच्छा मनुष्य होना है। प्रारंभ में लेखक डॉ देवधर महंत ने पं स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी के कार्यों का उल्लेख किया। पब्लिक रिलेशन सोसायटी आफ इंडिया रायपुर चेप्टर के चेयरमैन डॉ शाहिद अली ने स्वागत वक्तव्य दिया। संगोष्ठी का संचालन डॉ सुधीर शर्मा ने किया। पं डॉ सुशील त्रिवेदी, कुणाल शुक्ल, डॉ चित्तरंजन कर आदि ने अपने विचार संगोष्ठी में व्यक्त किए।‌ डॉ.सुधीर शर्मा ने बताया कि पं माधवराव सप्रे जयंती वर्ष की श्रृंखला में अनेक आयोजन होंगे। यह संगोष्ठी छत्तीसगढ़ मित्र स्टूडियो के यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है।

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