बिलासपुर, 5 जुलाई। आपराधिक मामलों की पैरवी करने के लिए सरकारी अधिवक्ताओं को विचारण न्यायालय में 7 साल का अनुभव होना अनिवार्य है। यह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 में उल्लेखित है। इसके बाद भी छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में सरकारी अधिवक्ता ऐसे नियुक्त किए हैं जिनको वकालत करते अभी 7 साल हुए ही नहीं है। इसको चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इसमें कोर्ट से दिशा निर्देश देने और डाटा मंगाने की मांग की गई है। राम नारायण केंवट ने अधिवक्क्ता योगेश्वर शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 में दिए प्रावधान के विपरीत छत्तीसगढ़ में हुई सरकारी अधिवक्ताओं की भर्ती को चुनौती दिया है। याचिका में कहा गया कि नियम है कि विचारण न्यायालय में आपराधिक मुकदमे में सरकार की तरफ से लड़ने वाले सरकारी अधिवक्ता को 7 साल का अनुभव होना अनिवार्य है। ऐसा नहीं होने से न्याय मिलने की गुंजाइश खत्म हो जाता है। इसके बाद भी 2015, 2016 में पास अधिवक्ताओं को आपराधिक मुकदमे के लिए सरकारी अधिवक्ता नियुक्त कर दिया गया है। इसलिए हर जिले से ऐसे अधिवक्ताओं जिनको 7 साल का अनुभव नहीं है। उनका डाटा मंगाया जाए। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से मांग की है कि हर जिले में विचारण न्यायालय में सरकार का पक्ष रखने के लिए जो सरकारी अधिवक्ता नियुक्त किए गए हैं, उनके लिए निर्देश जारी करें।