विभिन्न मंत्रालयों की सिफारिश पर नीति आयोग की रिपोर्ट बनी, कोरोना संकट को देखते हुए तत्काल प्रभाव से लागू

बिलासपुर। केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर ताप विद्युत संयंत्रों के लिए वह बाध्यता हटा दी है जिसमें उन्हें धुला हुआ कोयला इस्तेमाल करने का निर्देश है। आदेश के बाद अब देश भर के खदानों से ताप विद्युत संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति सीधे की जा सकेगी। कोविड-19 के संक्रमण को देखते हुए आदेश तुरंत लागू करने कहा गया है। इससे छत्तीसगढ़ सहित देशभर के कोलवाशरी से फैलने वाले प्रदूषण पर रोक लगेगी वहीं वाशरीज़ के पास सिर्फ स्पंज आयरन के लिए कोयले की धुलाई का काम रह जायेगा। पर्यावरण संरक्षण की लगातार लड़ाई लड़ रहे सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने केन्द्र सरकार के इस आदेश का स्वागत किया है।

पर्यावरण मंत्रालय ने यह निर्णय नीति आयोग की रिपोर्ट के आधार पर लिया है। यह रिपोर्ट कोयला मंत्रालय, जल संसाधन, पर्यावरण व उर्जा मंत्रालय से विचार विमर्श के बाद तैयार की गई। इस रिपोर्ट में कहा गया कि कोल वाशरी से कोयले के ऐश कंटेट की पूरी तरह से सफाई नहीं होती। कोयले की सफाई में बहुत अधिक पानी का इस्तेमाल होता है इसके अलावा वाशरी के आसपास पानी और उपज में प्रदूषण का फैलाव होता है। कोल वाशरी छोटी-छोटी इकाईयों के रूप में स्थापित हैं, जिनके द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के मानकों के पालन किया जा रहा है या नहीं इस पर निगरानी नहीं रखी जा सकती है। इसके मुकाबले विद्युत संयंत्रों पर निगरानी रखना आसान है। उन्हें प्रदूषण नियंत्रण के मानकों के पालन के लिए अधिक कड़ाई से पालन करने के लिए कहा जा सकता है। उन्हें प्रदूषण नियंत्रण के अत्याधुनिक उपकरण लगाने के लिये भी बाध्य किया जा सकता है। नीति आयोग के समक्ष कोयला मंत्रालय ने कहा था कि कोयले की गुणवत्ता, आकार और बाहरी सामग्री में सुधार के लिए वह लगातार प्रयास कर रही है। धुलाई के लिये कोयला बड़ी मात्रा में सड़कों से वाशरी तक फिर संयंत्र और साइडिंग तक ले जाया जाता है, इससे प्रदूषण बढ़ता है। कोल वाशरी में बचा हुआ निम्न श्रेणी के कोयले का भंडारण, मिट्टी के रख-रखाव, उड़ने वाली धूल की प्रक्रिया में भी पर्यावरण का नुकसान है। इसके अलावा इस कोयले को इस्तेमाल के लिये स्थानीय छोटी इकाईयों को दिया जाता है जिससे उस क्षेत्र में प्रदूषण बढ़ता है।

ताप विद्युत संयंत्रों में कोल वाशरी के कोयले का इस्तेमाल का निर्णय सबसे पहले सन् 1999 में लिया गया था। इसके बाद सन् 2011 में कुछ नियम बनाये गये। 2 जून 2014 को एक अधिसूचना जारी कर कोयला खदानों से 1000 किलोमीटर दूर स्थित पावर प्लांट के लिए धुले हुए कोयले, जिसमें 34 प्रतिशत से अधिक राख न हो का इस्तेमाल का नियम बनाया गया। इसके बाद 1 जनवरी 2015 से यह नियम 750 किलोमीटर दूर तक के संयंत्रों के लिए और 5 जून 2016 को 500 किलोमीटर दूर तक के ताप विद्युत संयंत्रों के लिए लागू कर दिया गया। अब ये बाध्यता पूरी तरह खत्म कर दी गई है।

इस अधिसूचना में देश में व्याप्त कोरोना महामारी के संकट का जिक्र करते हुए कहा गया है कि पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता को देखते हुए तत्काल प्रभाव से यह आदेश लागू किया जाये।

प्रदूषण पर नियंत्रण की दिशा में महत्वपूर्ण फैसला- सुदीप श्रीवास्तव

सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की इस अधिसूचना का स्वागत करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में जगह-जगह कोल वाशरी खुल गये हैं, जिसका स्थानीय पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुंच रहा है। लोगों की आजीविका और भू जल स्तर पर भी संकट खड़ा हुआ है क्योंकि कोल वाशरी राख  और अवशिष्ट का निष्पादन नहीं करतीं। कोलवाशरी संयंत्रों में बहुत अधिक पानी का इस्तेमाल होता है। परिवहन और साइडिंग के दौरान भी पर्यावरण को क्षति पहुंचती है। एसईसीएल के अधिकांश कोयला खदानों में 40 प्रतिशत तक ऐश कंटेट होता है, जबकि पावर प्लांट को 34 प्रतिशत तक ऐश कंटेट का इस्तेमाल करना है। ऐसे में पावर प्लांट में थोड़ा सुधार कर प्रदूषण पर नियंत्रण रखते हुए खदान के कोयले का सीधे इस्तेमाल किया जा सकता है। श्रीवास्तव ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय के आदेश के बाद प्रति यूनिट बिजली उत्पादन में कम से कम 50 पैसे कम खर्च होंगे। निजी बिजली संयंत्र तो इसे निश्चित रूप से अपनायेंगे क्योंकि बाध्यता खत्म हो गई है। हमें देखना होगा कि किसी अनुचित लाभ के लिए सरकारी संयंत्र कोल वाशरी से कोयला खरीदने की प्रक्रिया जारी न रखें।

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