सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के बहुचर्चित मामले में फैसला सुनाया

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक बहुप्रतीक्षित फैसले में गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान बिलकिस बानो सहित कई हत्याओं और सामूहिक बलात्कार के लिए आजीवन कारावास की सजा पाने वाले 11 दोषियों की सजा में छूट रद्द कर दी है। इन दोषियों को अगस्त 2022 में स्वतंत्रता दिवस पर रिहा कर दिया गया, जिससे व्यापक विवाद खड़ा हो गया था और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष संवैधानिक चुनौतियां पैदा हो गई थी। कोर्ट ने सभी दोषियों को दो सप्ताह के भीतर सरेंडर करने कहा है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ ने अगस्त में शुरू हुई 11 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद 12 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसके अलावा, अदालत ने गुजरात और केंद्र सरकार को उनके पास उपलब्ध मूल रिकॉर्ड जमा करने का भी निर्देश दिया।
कोर्ट ने बिलकिस बानो केस में 11 दोषियों को दी गई छूट को इस आधार पर खारिज कर दिया कि गुजरात सरकार के पास सजा में छूट देने का कोई अधिकार नहीं था। शीर्ष कोर्ट  ने कहा कि 13 मई 2022 के जिस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को रिहाई पर विचार के लिए कहा था, वह दोषियों ने भौतिक तथ्यों को दबाकर और भ्रामक तथ्य बनाकर हासिल किया। जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि अपराधी को सुधरने का मौका दिया जाता है. लेकिन पीड़िता की तकलीफ का भी एहसास होना चाहिए। हमने कानूनी लिहाज से मामले को परखा है और पीड़िता की याचिका को हमने सुनवाई योग्य माना है। इसी मामले में जो जनहित याचिकाएं दाखिल हुई हैं, हम उनके सुनवाई योग्य होने या न होने पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। सर्वोच्च अदालत ने कहा, जिस कोर्ट में मुकदमा चला था, रिहाई पर फैसले से पहले गुजरात सरकार को उसकी राय लेनी चाहिए थी। जिस राज्य में आरोपियों को सजा मिली, उसे ही रिहाई पर फैसला लेना चाहिए था। दोषियों को महाराष्ट्र में सजा मिली थी। इस आधार पर रिहाई का आदेश निरस्त हो जाता है। कोर्ट ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है जहां इस अदालत के आदेश का इस्तेमाल छूट देकर कानून के शासन का उल्लंघन करने के लिए किया गया। हमारा मानना ​​है कि इन दोषियों को स्वतंत्रता से वंचित करना उचित है। एक बार उन्हें दोषी ठहराए जाने और जेल में डाल दिए जाने के बाद उन्होंने अपनी स्वतंत्रता का अधिकार खो दिया है। साथ ही, यदि वे दोबारा सजा में छूट चाहते हैं तो यह जरूरी है कि उन्हें जेल में रहना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने सभी 11 दोषियों को 2 हफ्ते में सरेंडर करने के लिए कहा है.
मालूम हो कि  2002 में गुजरात में गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था। इसके बाद गुजरात में दंगे फैल गए थे। इन दंगों की चपेट में बिलकिस बानो का परिवार भी आ गया था। मार्च 2002 में भीड़ ने बिलकिस बानो के साथ रेप किया था। तब बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं। भीड़ ने उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी, बाकी 6 सदस्य वहां से भाग गए थे। कई सालों की सुनवाई के बाद सीबीआई कोर्ट ने 11 लोगों को दोषी ठहराया और उम्रकैद की सजा सुनाई। इनमें से एक दोषी ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर कर रिमिशन पॉलिसी के तहत उसे रिहा करने की मांग की थी। गुजरात हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। इसके बाद दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गुजरात सरकार से फैसला लेने के लिए कहा। इसके बाद गुजरात सरकार ने रिहाई पर फैसला करने के लिए कमेटी का गठन किया। कमेटी की सिफारिश पर गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया।
ये आरोपी हुए थे रिहा- जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहनिया, प्रदीप मोर्दहिया, बकाभाई वोहनिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना। जेल में 15 साल गुजारने के साथ-साथ कैद के दौरान उनकी उम्र और व्यवहार का हवाला देते हुए हुए उन्हें 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सभी 11 दोषियों को जेल जाना पड़ेगा।

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