कुटुम्ब न्यायालय से सेवानिवृत्त होने के बाद समाजसेवी डॉ. अवस्थी ने बनाई योजना

बिलासपुर। कुटुम्ब न्यायालय में बीते 11 वर्षों तक परामर्शदाता के रूप में सेवाएं देने वालीं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सत्यभामा अवस्थी ने विशेषज्ञों के साथ मिलकर परिवारों के विघटन को रोकने ऑनलाइन सेवाएं शुरू करने की योजना बनाई है। इसके अलावा वे एकल महिलाओं के लिए भी संगठन तैयार कर रही हैं।

डॉ. अवस्थी ने आज बिलासपुर प्रेस क्लब में पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि 11 वर्षों तक कुटुम्ब न्यायालय में परामर्शदाता की भूमिका निभाने के बाद वे औपचारिक सेवानिवृत्त हो चुकी हैं, पर आगे भी अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए परिवारों के विघटन को रोकने के लिए काम करेंगी। इसके लिए एक ऑनलाइन सेवा परामर्शदाता डॉट कॉम शुरू किया जा रहा है। ऑनलाइन काउन्सिल का यह छत्तीसगढ़ में पहला प्रयोग है। लोगों की व्यस्त दिनचर्या में लोगों की समस्याओं को सुनकर ऑनलाइन सुझाव देना एक बेहतर विकल्प होगा। इस पोर्टल से विधि विशेषज्ञ, मनोचिकित्सक तथा विवाह तथा कैरियर के काउन्सलर जुड़ेंगे। ज्यादातर लोगों को अपने व्यावसायिक और पारिवारिक समस्याओं के समाधान के लिए सही सलाह नहीं मिलती और इसके लिए उन्हें भारी खर्च भी करना पड़ता है। यह मंच ऐसे लोगों के लिए उपयोगी होगा। पति-पत्नी, अभिभावक, बच्चों आदि सभी से जुड़ी समस्याओं पर वैज्ञानिक और व्यवहारिक समाधान इसके जरिये सुझाया जायेगा।

डॉ. अवस्थी ने बताया कि समाज सेवा के अलग-अलग फील्ड में काम करते हुए उन्होंने कहा कि एकल महिलाओं को अपनी समस्याएं, रूचि, मनोरंजन आदि को साझा करने के लिए कोई मंच यहां उपलब्ध नहीं है। इसके लिए उन्होंने स्व ( सिंगल वूमेन एसोसियेशन) गठित कर रही हैं। ऐसी महिलाएं एक संगठन के साथ आकर अपनी रूचि, विचार और मनोरंजन का आदान-प्रदान कर सकेंगीं।

महिला सशक्तिकरण का सही मायने समझना जरूरी

कुटुम्ब न्यायालय व परिवार परामर्श केन्द्र में वर्षों तक सेवा देने वाली डॉ. अवस्थी ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि पारिवारिक विवाद जिनमें पति-पत्नी के बीच अलगाव, विवाह विच्छेद, बच्चों की परवरिश, वृद्ध माता-पिता की देखभाल जैसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब 11 साल पहले उन्हें कुटुम्ब न्यायालय में नियुक्त किया गया तो सिर्फ एक फैमिली कोर्ट होती थी, अब दो फैमिली कोर्ट हैं इसके अलावा दो और स्वीकृत हो चुके हैं। इस तरह से मामलों की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि चार न्यायालयों में इसकी सुनवाई होगी।

उन्होंने कहा कि हमने महिला सशक्तिकरण को हमेशा बढ़ावा दिया और यह जरूरी है पर अब जब महिलाएं भी पुरुष के बराबर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है एक दूसरे के प्रति उदारता की कमी दिखाई देती है। भारतीय समाज में परिवार के ढांचे का बड़ा महत्व है और छोटी-छोटी बातों को लेकर विवाद बड़ा रूप ले लेता है, जिससे अलगाव की समस्या खड़ी हो रही है। विवाह दो परिवारों को जोड़ता है उसी तरह तलाक से पति-पत्नी का ही रिश्ता नहीं दो परिवारों के बीच का रिश्ता खत्म हो जाता है। माता-पिता के अलगाव के कारण बच्चों पर पड़ने वाला मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी एक बड़ी समस्या है। सोशल मीडिया, बाजारवाद और भूमंडलीयकरण ने हमें आत्म केन्द्रित कर रखा है। भौतिक रूप से हम अकेले होते जा रहे हैं। डॉ. अवस्थी ने विश्वास किया कि जिस तरह से पुराने दौर के कपड़ों का फैशन दुबारा लौट जाता है उसी तरह एकल परिवार की जगह फिर से संयुक्त परिवार की ओर लोग बढ़ेंगे जो परिवारों को टूटने से, माता पिता को उपेक्षा से और बच्चों को एकाकीपन से छुटकारा दिलायेगा।

 

 

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