गांधीवादी विचारक कुमार प्रशांत बिलासपुर प्रेस क्लब में

बिलासपुर। सावरकर को यदि भारत रत्न दे दिया गया तो इस सम्मान का इससे बढ़कर अवमूल्यन कुछ नहीं है। देश के गृह मंत्री का कहना है कि हम संसद में 370 हो गये इसलिये कश्मीर से धारा 370 को खत्म कर दिया। इसका मतलब यह है कि वे अब वह सब करना चाहेंगे जो उनके एजेंडे में है।

यह बात प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक, पत्रकार व गांधी शांति प्रतिष्ठान के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने बिलासपुर प्रेस क्लब में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कही। वे गनियारी में दो दिन का व्याख्यान गांधी से जुड़े विषयों पर दे रहे हैं। आज उनके व्याख्यान का वहां आज दूसरा दिन है।

उन्होंने कहा कि जो लोग गांधी और सावरकर में तुलना कर रहे हैं वे छद्म कर रहे हैं। गांधी और सावरकर अलग-अलग ध्रुव के हैं। या तो आप गांधी को चाहो या सावरकर को, दोनों को एक साथ नहीं चाह सकते। आज गांधी को नहीं मानने वाले लोग उन्हें मानने का दावा कर रहे हैं। आज गांधी की आड़ में खुद को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया जा रहा है। उनको यह कहने का अधिकार है कि वे नहीं मानते। गांधी और अ-गांधी का भेद मिट गया है यह चिंता की बात है। गांधीजी को बहुत नजदीक से  गोली मारी गई ताकि उनके बचने की कोई संभावना नहीं रहे पर गांधी मरे नहीं। इसीलिये आज भी उनके प्रतीकों पर गोलियां चलाई जा रही है।

कुमार प्रशांत ने कहा कि दरअसल गांधी मानवीय मूल्यों के प्रतीक हैं। आज की दौर में उनका कोई विकल्प नहीं है। दुनिया भर में न्याय और आजादी के लिए होने वाली हर लड़ाई में गांधी का दृष्टिकोण कारगर है। हाल ही में हांगकांग में हुई लड़ाई में भी यह देखा गया। इसीलिये गांधी को आज उनके पैदा होने के 150 साल बाद भी हर कोई अपना बताना चाहता है। गांधी का कोई विकल्प नहीं है। गांधी को अहिंसा से गहरा लगाव था लेकिन वे उन्होंने उसके लिए एक सीमारेखा खींच दी। उन्होंने कहा था कि कायरता और हिंसा में से किसी एक को चुनना है तो वे हिंसा को चुनेंगे। इस अर्थ में वे हमेशा प्रासंगिक बने रहते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से पूछा गया कि वे यदि  वे अतीत के किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के साथ नाश्ता करना चाहेंगे तो वह कौन होगा? ओबामा ने गांधी का नाम लिया। कहा, एक तो वे बहुत कम खाते हैं इसलिये उनकी पत्नी को नाश्ता तैयार करने में कम समय लगेगा। दूसरा उनसे वे पूछेंगे कि इतने कम संसाधनों में वे इतना मूल्यवान जीवन किस तरह से जी लेते हैं,क्योंकि आज अमेरिका सहित सारी दुनिया के लोग कम होते संसाधनों और मनुष्य की बढ़ती जरूरतों को लेकर चिंतित है। जब दुनिया में संसाधन सिकुड़ रहे हों तो यही ‘बूढ़ा आदमी’ गांधी विकल्प सुझाता है। गांधी फिर प्रासंगिक हो जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी ने विदेश मंत्री रहते हुए गांधी का जिक्र विदेशी मंचों पर शुरू किया। जब उनसे यह बात पूछी गई तो उन्होंने बड़ी साफगोई से कहा कि गांधी का ही सिक्का दुनिया में चलता है।

राम जन्मभूमि विवाद पर आज महात्मा गांधी होते तो उनका नजरिया क्या होता? कुमार प्रशांत ने कहा कि रामजन्मभूमि विवाद गांधी के समय शुरू हो चुका था। गांधीजी इस तरह के मुद्दों पर चाहते थे कि जिनके बीच विवाद है वही इसे आपस में मिलकर सुलझाएं बाहर के लोग दखल न दें। इस मुद्दे का हल अयोध्या के ही लोगों को हल करने दिया जाना था। कुमार प्रशांत ने यह भी कहा कि वे तो मानते हैं कि ऐसे मामलों को सुप्रीम कोर्ट में भी नहीं सुना जाना चाहिये। विवाद उठाने वाले लोग ईमानदार नहीं है इसलिये बार-बार इस मुद्दे को सामने लाया जाता है। इसके राजनैतिक लक्ष्य हैं। लेकिन एक बार जब अदालत पर फैसला छोड़ा गया है तो उसे पूरी दृढ़ता के साथ लागू किया जाये। चाहे हिन्दुओं के पक्ष में हो या मुसलमानों के पक्ष में- किसी की हार या जीत के रूप में इसे नहीं देखा जाये।

एक और सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि गांधी के नाम पर निकाली जा रही अलग अलग पदयात्राओं का कोई अर्थ नहीं है। लोग गांधी के विचारों को नहीं छोड़ते तो देश इस हाल में नहीं होता। भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर का नाथूराम गोडसे के बारे में दिये गये बयान को शर्मनाक बताते हुए कुमार प्रशांत ने कहा कि मीडिया को ऐसे बयानों को जगह ही नहीं देनी चाहिए।

शहीद भगत सिंह की फांसी को रोकने के लिए क्यों महात्मा गांधी ने कुछ नहीं किया, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि यह लम्बी चर्चा का विषय है। पर यह सच नहीं है। गांधी जी एक प्रभावशाली नेता और मनुष्य होने के नाते जो कुछ संभव था करते रहे। गांधी को कांग्रेस कार्यसमिति ने राजनैतिक गतिरोध कम करने के लिए वाइसराय के साथ संवाद के लिये प्रतिनिधि बनाया लेकिन वे हर दिन उनसे तय सूची के अनुसार चर्चा करने के लिए भेजते थे। इस चर्चा में भगत सिंह सहित तीनों शहीदों पर बात करने का एजेंडा नहीं होता था। गांधीजी को अपनी चर्चा की रिपोर्ट भी कार्यसमिति को देने का निर्देश था। गांधी के मिजाज में ये शर्तें मानना नहीं था पर आजादी की लड़ाई न थमे इसके चलते वे इन शर्तों को मान गये थे। वाइसराय से उन्होंने दसियों बार भगत सिंह, सुखेदव व राजगुरु की फांसी रोकने की अपील की। वाइसराय ने एक बार कहा कि वे सभी राजनीतिक बंदियों को छोड़ने के लिए राजी हैं। तब गांधी ने पूछा फिर तो भगत सिंह भी रिहा होंगे। वाइसराय ने कहा कि नहीं, वे राजनीतिक बंदी नहीं थे। अंत में जब फांसी की तारीख पास आई तो गांधी ने वाइसराय को इसाई धर्म की सीख दया और अहिंसा का हवाला देते हुए मार्मिक पत्र लिखा, पर वाइसराय पर उसका कोई असर नहीं पड़ा। दरअसल, वाइसराय के हाथ भी बंधे थे। वे इंग्लैंड के निर्देश पर काम कर रहे थे। साम्राज्यवादी चाहते थे कि गांधी विफल हों, उनके प्रति देश के लोगों में विश्वास घटे और दूसरे विकल्पों को लोग चुनें। इसीलिये तीनों शहीदों को फांसी तय समय  से पहले, शाम को दे दी गई।

कुमार  प्रशांत ने कहा कि गांधी के विचारों को कुछ लोग पुराना कहकर खारिज करते हैं और आधुनिक भारत का निर्माता नेहरू को मानते हैं। पर नेहरू ने बहुत साल बाद गलती मानी कि हम वापस लौट नहीं सकते, गांधी का ही रास्ता सही था।

 

 

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