‘सावरकर यदि वीर हैं तो वीरता की परिभाषा बदलनी पड़ेगी’

बिलासपुर। प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक कुमार प्रशांत का कहना है कि देश को आजाद करने की पृष्ठभूमि बन चुकी पर देश के विभाजन के लार्ड माउन्टबेटन के प्रस्ताव पर भी गांधी को छोड़कर सारे नेताओं के बीच सहमति बन चुकी थी। तमाम बड़े नेताओं ने गांधी को अंधेरे में रखते हुए इसके लिए सहमति दे दी थी।

गनियारी स्थित जन स्वास्थ्य सहयोग केन्द्र में मध्यप्रदेश युवा संगठन की ओर से आयोजित अपने दो दिन के व्याख्यान के दूसरे दिन ‘महात्मा गांधी व भारत का विभाजन’ विषय पर कुमार प्रशांत ने अपना विचार रखा। उन्होंने बताया कि आजादी मिलने के कुछ दिन पहले नवाखौली में दंगा भड़का था। गांधी दिल्ली में हो रही घटनाओं से अनभिज्ञ थे। आजादी के आंदोलन के पांच-सात बड़े नेताओं के बीच वाइसराय लार्ड माउंटबेटन की डील हो चुकी थी। गांधीजी दिल्ली लौटकर आये तो दो दिन तक उनसे कोई मिलने के लिए ही नहीं पहुंचा। उन्होंने तब सरदार पटेल को एक चिट्टी लिखी। कहा- मैं दो दिन से यहां आ चुका हूं पर ऐसा लगता है कि मेरे पास कोई काम नहीं हैं और दुनियाभर के सारे काम आप लोगों के पास है। तब शाम के वक्त मौलाना अब्दुल कलाम ‘आजाद’ गांधीजी से मिलने के लिए पहुंचते हैं। गांधी जी मौलाना आजाद से पूछते हैं कि मैंने सुना है आप लोगों ने माउन्टबेटन के सारे प्रस्ताव स्वीकार कर लिये हैं, जिसमें देश का विभाजन भी शामिल है। आजाद ने कहा-नहीं गांधी जी इतना बड़ा फैसला आपसे बिना पूछे कोई कैसे कर सकता है। गांधीजी ने तब लालटेन के नीचे दबे कागज का एक पुर्जा आजाद के सामने रख दिया जिसमें मौलाना ने लार्ड माउन्टबेटन के साथ भारत के विभाजन के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। यह पत्र यदि गांधीजी सार्वजनिक कर देते तो मौलाना का पूरा कैरियर ही खत्म हो जाता। अगले दिन कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पं. जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि हमने कोशिश की आपको बताने की लेकिन आप इतनी दूर थे कि आप तक बात नहीं पहुंचाई जा सकी। गांधी हरगिज नहीं चाहते थे कि भारत का विभाजन हो। पर सभी नेताओं ने अपनी पोजिशन तय कर ली थी। गांधी अंतिम प्रयास के रूप में लार्ड माउन्टबेटन से मिलने गये। उन्होंने निवेदन किया कि विभाजन पर फैसला लेने में जल्दबाजी न करें। लार्ड माउन्टबेटन ने कैलेंडर की ओर इशारा करते हुए कहा कि उनके लौटने की तारीख तय हो चुकी है। गांधी ने जिन्ना से कहा कि तुम्हारा पाकिस्तान तुम्हें मिलेगा बस अंग्रेजों से कह दो हम लोग प्यार से बंटवारा कर लेंगे। वे बीच में न पड़ें। जिन्ना ने कहा कि हमें अंग्रेजों की उपस्थिति में ही बंटवारा चाहिये। कल को आप अपनी बात से पलट गये तो? तब गांधी ने कार्यसमिति के समक्ष सुझाव रखा कि सारा पॉवर जिन्ना को सौंप दो। एक बार अंग्रेज निकल जायें फिर हम आपस में तय कर लेंगे, क्या करना है। पं. नेहरू ने कहा कि ठीक है जिन्ना को पॉवर सौंप देते हैं पर इसकी देश में जो प्रतिक्रिया होगी उसे आप संभालेंगे। गांधीजी ने कहा था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा। वे दक्षिण अफ्रीका का जातीय संघर्ष देख चुके थे। भारत पाकिस्तान के बंटवारे से पैदा होने वाली भयावह परिस्थिति का वे अनुमान लगा चुके थे। हुआ भी यही। यह मानव इतिहास की दरिंदगी का सबसे बड़ा उदाहरण था। गांधी समझ रहे थे कि अब आजादी मिल चुकी है। न उनका कांग्रेस में प्रभाव रह गया है न मुसलमानों में। लाखों लोगों की लाश पर भारत का विभाजन तय है। 70 साल हो गये, जिन लोगों ने उस विभाजन को भोगा है वे आज भी सिहर जाते हैं। जिन्ना ने भी बाद में इस विभाजन का परिणाम देखकर सिर पीट लिया था। उसने इसे अपनी जिन्दगी की सबसे बड़ी भूल माना। यही हाल पटेल और नेहरू का था। जिन मुसलमानों के नाम पर अलग पाकिस्तान बनाया गया उनसे ज्यादा मुसलमान तो हिन्दुस्तान में ही रह गये। यह विभाजन दो सभ्यताओं, दो भविष्यों और दो जुड़वा बच्चों को काटने जैसा था।

इस बीच आजादी के आंदोलन में सावरकर का जिक्र आया। उन्होंने कहा कि विनायक दामोदर राव सावरकर ही एक अपवाद थे, जो हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के होते हुए भी अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में शामिल हुए। पुणे में उन्होंने एक अंग्रेज अधिकारी की हत्या कराई थी। सावरकर को इंग्लैंड में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें पानी के जहाज से भारत लाया जा रहा था तो वे जहाज से कूदकर भागे और फ्रांस की धरती पर पहुंच गये। अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें फिर अपनी गिरफ्त मे ले लिया। उन्हें काला पानी की सजा दी गई और अंडमान की काल कोठरी में डाल दिया गया। उन्होंने कैद से छुटकारा पाने के लिए अंग्रेज सरकार को चिट्ठी लिखी और माफी मांगी तथा सम्राट के प्रति भक्ति का वचन दिया। बहुत कम उदाहरण हैं जब सेल्यूलर जेल से कोई रिहा हुआ हो। सावरकर रत्नागिरी के जेल में लाये गये और कुछ दिन बाद उन्हें छोड़ दिया गया। सावरकर ने रिहा होने के बाद अंग्रेजों से किया गया वचन निभाया और दुबारा फिर कभी उनके खिलाफ कोई आंदोलन नहीं किया। जेल से बाहर निकलने के बाद उनके तीन ही काम थे, हिन्दुत्व का प्रचार, मुसलमानों के प्रति द्वेष और महात्मा गांधी की छवि को खराब करना। ये उनके ही शब्द थे। ऐसे में यदि सावरकर को वीर कहा जाता हो तो वीरता की परिभाषा बदलनी पड़ेगी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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