बिलासपुर। भ्रष्टाचार के आरोप में सेवा से बर्खास्त और सात साल की कैद की सजा पाने वाले एडीएम संतोष देवांगन को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। बिलासपुर में रहते हुए उन पर आरोप लगा था कि एक दस्तावेज में कूटरचना कर उन्होंने शासन को क्षति पहुंचाई है।

बिलासपुर के लिंगियाडीह निवासी कमलेश शुक्ला ने सात दिसंबर वर्ष 2009 को एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत की थी। इसमें राजकिशोर नगर निवासी सरदारी लाल कश्यप की ओर से शिवदयाल कश्यप, कॉलोनाइजर चितपाल सिंह वालिया समेत 9 लोगों के खिलाफ कॉलोनी निर्माण से आने-जाने के रास्ते पर अवरोध, शासकीय जमीन पर सड़क निर्माण और अन्य अनियमितताओं से संबंधित शिकायतों का उल्लेख था। 18 जून 2009 को बिलासपुर के तत्कालीन एसडीएम संतोष देवांगन ने कॉलोनाइजर्स पर छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम की धारा 6 (घ) (छ) व कॉलोनाइजर नियम 1999 के तहत डेढ़ लाख रुपए का जुर्माना लगाया। कुछ दिन बाद देवांगन ने कॉलोनाइजर को आर्थिक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से पुराने आदेश को पलटकर नया आदेश जारी कर दिया और जुर्माने को घटाकर 15 हजार रुपये कर दिया। एंटी करप्शन ब्यूरो ने जांच के बाद संयुक्त कलेक्टर संतोष देवांगन के खिलाफ धारा 467, 468, 471, 420, 120 बी, 13/1 डी, 13/2 के तहत अपराध पंजीबद्ध किया। एसीबी ने उन्हें 6 दिसंबर 2014 को बलौदाबाजार कलेक्टर के बंगले के बाहर से गिरफ्तार किया था, जिसके बाद उन्हें न्यायालय के आदेश पर जेल भेज दिया गया था। एसीबी ने 2015 में उनके खिलाफ चालान पेश किया। 6 जून 2017 को बिलासपुर के जिला सत्र न्यायालय ने उन्हें सात वर्ष के कैद की सजा सुनाई। सजा सुनाये जाने के बाद 16 जुलाई 2017 को उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इस समय वे नारायणपुर, बस्तर के एडीएम थे। सजा सुनाए जाने के बाद उन्हें दो माह जेल में रहना पड़ा, जिसके बाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। सजा के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। बचाव पक्ष के वकील की ओर से तर्क दिया गया था कि जुर्माने की राशि कम करने में देवांगन की कोई भूमिका नहीं रही। दफ्तर के बाबुओं ने ही जुर्माने की राशि 1.15 लाख को 15 हजार रुपये कर दिया था। हाईकोर्ट जस्टिस राजेन्द्र चंद्र सिंह सामंत की अदालत में बुधवार को उन्हें बरी करने का फैसला सुनाया गया।

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