ग्रामीण प्रौद्योगिकी विभाग की परियोजना का अवलोकन करने पहुंचे जांजगीर-चाम्पा जिले के कृषक

बिलासपुर। गुरु घासीदास विश्वविद्यालय की प्राकृतिक संसाधन अध्ययनशाला के अंतर्गत  ग्रामीण प्रौद्योगिकी एंव सामाजिक विकास विभाग का जांजगीर चाम्पा जिले से आए हुए 77 रेशम उत्पादक किसानों ने भ्रमण किया। उनके साथ संयुक्त संचालक श्रीराम मीणा, सहायक संचालक डॉ. राकेश गुप्ता तथा प्रशिक्षण प्रभारी बी.पी.बंजारा, रेशम अनुसंधान विकास एंव प्रशिक्षण केन्द्र कोनी भी थे।

केन्द्रीय विश्वविद्यालय की माननीय कुलपति प्रो. अंजिला गुप्ता के प्रयासों से ग्रामीण प्रौद्योगिकी विभाग में छात्रों द्वारा केचुआ खाद, ऐजोला उत्पादन, लाख उत्पादन, मशरूम उत्पादन, नाडेप खाद उत्पादन, आदि किये जा रहे हैं। ग्रामीण प्रौद्योगिकी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ दिलीप कुमार ने आगंतुक किसानों को बताया कि केचुआ खाद में लगभग 12 प्रकार के पोषक तत्व संतुलित मात्रा में पाये जाते हैं, जिससे शहतूत, साजा, अर्जुन व अन्य रेशम पोषक पौधों का उचित विकास होता है। उन्होंने किसानों को अपने घर पर ही कम लागत पर उच्च गुणवत्ता युक्त केचुआ खाद बनाने तथा उपयोग करने की विधि बताई।

ग्रामीण प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पुष्पराज सिह ने किसानों को बेर के पौधे में कोकुन पालन व लाख पालन करने की नवीनतम तकनीक तथा समन्वित कृषि के बारे में बताया जिसे अपनाकर किसान दोहरा लाभ प्राप्त कर सके। सहायक प्राध्यापक संजीव कुमार भगत ने विभाग में रोपित साजा तथा अर्जुन के पौधों में उचित कांट छांट की विधि को प्रायोगिक तौर पर कर के बताया। सहायक प्राध्यापक डॉ. लोकेश कुमार टिन्डे ने कृषकों को बताया कि पशुओं के गोबर के साथ मशरूम के अपशिष्ट पदार्थ को मिलाकर जैविक खाद बनाने से खाद की गुणवत्ता अच्छी होती है।

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