बिलासपुर। कर्नाटक के काबिनी अभयारण्य में हाल ही में काले और सामान्य तेंदुए की एक दुर्लभ तस्वीर वायरल हुई है, जो दुनिया भर में तारीफें बटोर रही है। वन विभाग थोड़ा प्रयास करे तो अचानकमार अभयारण्य को भी देश-विदेश में इसी तरह ख्याति मिल सकती है क्योंकि यहां काबिनी से पहले ही काले तेंदुए की मौजूदगी दर्ज की जा चुकी है।

वन्य जीव सलाहरकार बोर्ड में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सलाहकार रह चुके प्राण चड्डा ने कहा कि फोटोग्राफर मिथुन एच ने लगातार प्रयास कर लम्बी प्रतीक्षा के बाद कर्नाटक के काबिनी अभयारण्य में काले और सामान्य तेंदुए की एक साथ तस्वीर ली। उनको बधाई !! यदि छत्तीसगढ़ का वन विभाग तय कर ले तो अचानकमार अभयारण्य भी काबिनी की तरह देश विदेश में मशहूर हो सकता है। चड्डा ने कहा कि पिछली बार जब वन्य जीवों की गणना की गई थी तो अचानकमार में लगे कैमरे में काला तेंदुआ रिकॉर्ड किया गया था। इस बारिश के बाद उसके विचरण क्षेत्र का पता लगाना चाहिये। इसके बाद इससे दोस्ती के लिये निर्धारित स्थल पर कुछ भेड़, बकरियों की कुर्बानी देनी पड़ेगी। यहां मौजूद हाथी इस काम में सहायक हो सकते हैं। वन्यजीवों को जब पता लग जाये कि मनुष्य हाथियों के दोस्त हैं तो दूरी घट जायेगी। फिर इनसे दोस्ती का रास्ता सीधे पेट से जुड़ा है। अचानकमार में इंडियन गौर बहुत और तुलनात्मक रूप से चीतल कम हैं। शक्तिशाली गौर का तेंदुआ शिकार नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में जब घर बैठे भोजन मिलेगा तो इस काले तेंदुए से दूरी कम हो जायेगी। अगले चरण में काले तेंदुए की जोड़ी सामान्य रंगके तेंदुए से बनाने की कोशिश की जाये। इनके शावकों की सुरक्षा के लिये हाथी और महावत को भी तैनात किया जाना चाहिये, जो बेशकीमती और दुर्लभ होंगे। रीवा के महाराजा मार्तंण्ड सिंह ने दुनिया को एकमात्र व्हाइट टाइगर मोहन की सौगात इसी तरह दी। फर्क यह होगा कि इनका विकास पिंजरे में नहीं जंगल में प्राकृतिक तरीके से करना होगा। केन्द्र सरकार से भी कुछ अनुमतियों की जरूरत पड़ सकती है, साथ ही विशेषज्ञों से सुझाव लेना पड़ सकता है।

चड्डा का कहना है कि अचानकमार में यदि यह काम कर लिया जाये तो वन्य पर्यटन और आय के मामले में यह छोटा राज्य ऊंची छलांग लगा लेगा।

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