समिति ने जोगी का जाति प्रमाण पत्र जब्त करने का निर्देश भी दिया

बिलासपुर । पूर्व मुख्यमंत्री व जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रमुख अजीत जोगी के ख़िलाफ फर्जी जाति प्रमाण पत्र मामले में गुरुवार की रात सिविल लाइन थाने में अपराध दर्ज किया गया। यह गैर जमानती अपराध है, जिसमें दो साल की सजा और 20 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। जोगी के खिलाफ याचिका दायर करने वाले ने इस घटनाक्रम के बाद पुलिस अधीक्षक से अपनी सुरक्षा की मांग की है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आदिवासी विकास विभाग के सचिव डीडी सिंह की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति ने बीते 23 अगस्त को जोगी के अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र को अमान्य कर दिया था। समिति की रिपोर्ट गुरुवार को बिलासपुर कलेक्टर के पास पहुंची। इसमें उन्हें छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति,जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग सामाजिक स्थिति प्रास्थिति अधिनियम 2013 की धारा 23 (3), 24(1) के तहत कार्रवाई करते हुए धारा 10 (1) के अंतर्गत कार्रवाई करने का निर्देश था। कलेक्टर की ओर से गुरुवार की रात 10 बजे तहसीलदार टी.आर. भारद्वाज ने सिविल लाइन थाने जोगी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। समिति ने उप- पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया है कि जोगी के पास उपलब्ध जाति प्रमाण पत्र को जब्त भी किया जाये। इसका पालन वे बिलासपुर पुलिस अधीक्षक की सहायता लेकर करेंगे।

इसके पहले जून 2017 में गठित आईएएस रीना बाबा कंगाले की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति ने भी जोगी को अनुसूचित जनजाति वर्ग का नहीं माना था। तब तत्कालीन कलेक्टर ने उनके प्रमाण पत्र को निरस्त करने का आदेश दिया था लेकिन उस समय उनके खिलाफ न तो एफआईआर दर्ज की गई थी और न ही उनका प्रमाण पत्र जब्त करने की कार्रवाई की गई थी। हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने तकनीकी आधार पर उस समिति के गठन को गलत ठहराया था, जिसके कारण उसकी रिपोर्ट भी अमान्य कर दी गई थी। हाईकोर्ट के आदेश पर ही डीडी सिंह समिति गठित की गई थी, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर सिविल लाइन थाने में अपराध दर्ज किया गया है।

हाईकोर्ट में कल क्या हुआ, आज क्या होगा?

पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 20 अगस्त को एक याचिका दायर कर कहा था कि उच्च स्तरीय छानबीन समिति उन्हें सुनवाई का पर्याप्त अवसर नही दे रही है। गुरुवार को कोर्ट में यह मामला सुनवाई के लिए आया तो शासन की ओर से कहा गया कि चूंकि समिति की रिपोर्ट आ चुकी है, इसलिये अब इस मामले में सुनवाई का औचित्य नहीं है। इस याचिका को सुनवाई योग्य नहीं पाया गया।

गुरुवार को ही जोगी ने छानबीन समिति की रिपोर्ट को उच्च-न्यायालय में चुनौती दी। उन्होंने रिपोर्ट में 55 बिन्दुओं पर खामियां बताते हुए इसे खारिज करने की मांग करते हुए याचिका दायर की। जस्टिस गौतम भादुड़ी की बेंच ने इसकी सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। शुक्रवार को याचिका चीफ जस्टिस से समक्ष रखी जायेगी, जिसमें इस याचिका का भविष्य तय होगा। रायपुर में प्रेस कांफ्रेंस लेकर अजीत जोगी ने घोषणा की थी कि वे इस रिपोर्ट को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।

अधिनियम में और भी कड़े प्रावधान

अवैध जाति प्रमाण पत्र के मामले में जोगी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। यदि उन्हें किसी सक्षम न्यायालय से राहत नहीं मिलती तो और भी कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। यह राज्य सरकार और प्रशासन के रुख पर निर्भर करता है।

अधिनियम के मुताबिक उन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में अब तक लिये गए लाभ की रिकव्हरी भी की जायेगी और मौजूदा प्राप्त सभी लाभों से वंचित किया जायेगा। यह बहुत बड़ी राशि होगी। अजीत जोगी इस समय मरवाही के विधायक हैं और पहले भी विधायक के रूप में अनुसूचित जनजाति वर्ग को मिलने वाले लाभों को ले चुके हैं।

कमेटी ने क्यों नहीं माना जोगी को आदिवासी?

हाईपावर छानबीन समिति ने पाया कि जोगी ने सन् 1957 में पेन्ड्रा के नायब तहसीलदार द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। उस समय नायब तहसीलदार को जाति प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार नहीं था, अतएव उसे समिति ने मान्य नहीं किया। जोगी ने ज्योतिपुर चर्च के रजिस्टर की प्रतिलिपि दी जिसमें इसाई धर्म स्वीकार करते समय उनके पिता काशीप्रसाद की जाति कंवर लिखी गई है। समिति का कहना है कि यह शासकीय दस्तावेज नहीं है। इसे प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। चर्च ने वही लिखा है जो काशी प्रसाद की ओर से बताया गया। भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के अनुसार यह लोक दस्तावेज नहीं है। समिति ने यह भी पाया कि जोगी और उनके भाई-बहनों का नाम स्कूली दस्तावेजों में इसाई दर्ज है। किसी भी दस्तावेज में कंवर जाति का उल्लेख नहीं है।

नेताम ने मांगी पुलिस सुरक्षा

उच्च स्तरीय छानबीन समिति की जोगी के खिलाफ आई रिपोर्ट और सिविल लाइन थाने में दर्ज अपराध के बाद याचिकाकर्ता इंजीनियर संतकुमार नेताम ने पुलिस अधीक्षक से अपनी सुरक्षा की मांग की है। नेताम का कहना है कि उनके समर्थक इस कार्रवाई के बाद उन पर हमला कर सकते हैं। नेताम को पहले भी पुलिस सुरक्षा प्रदान की गई थी। वे जब भी हाईकोर्ट जाते थे पुलिस बल उनके साथ होता था।

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