बिलासपुर। हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने की मांग की थी।

उच्च-स्तरीय जाति छानबीन समिति ने जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कंवर जाति प्रमाण पत्र को बीते 23 अगस्त 2019 को निरस्त कर दिया था। इसके बाद बिलासपुर के सिविल लाइन थाने में कलेक्टर के निर्देश पर तहसीलदार टीआर भारद्वाज ने जोगी के खिलाफ छत्तीसगढ़ अनुसूचित-जाति, जन-जाति, पिछड़ा वर्ग (सामाजिक प्रास्थिति के प्रमाणीकरण विनियमन) अधिनियम 2013 की धारा 10-1 के तहत अपराध दर्ज कराया था। प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने एफआईआर के आधार पर आगे की कार्रवाई करने पर रोक लगा दी थी। चीफ जस्टिस पी. आर. रामचंद्र मेनन के सिंगल बेंच में इसकी सुनवाई हुई। इस दौरान जोगी के अधिवक्ता की ओर से तर्क दिया गया कि यह कथित अपराध जिसमें जाति प्रमाण पत्र बनवाया गया, सन् 1967 को घटित हुआ है, जबकि जिस अधिनियम के अंतर्गत अपराध दर्ज किया गया है वह सन् 2013 से प्रभावी है। पूर्व के अपराधों पर एफआईआर दर्ज नहीं किया जा सकता। शासन की ओर से महाधिवक्ता ने तर्क रखा कि यह मामला सन् 1967 का होने के बावजूद इस प्रमाण पत्र के आधार पर सन् 2013 के बाद भी लगातार लाभ लिया गया है। इसके चलते उपरोक्त अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई जरूरी है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने की याचिका को मंगलवार को खारिज कर दिया।

जोगी के खिलाफ लगाई गई धारा गैर जमानती है। इसमें दो वर्ष की कैद और 20 हजार रुपये के जुर्माने के प्रावधान है।

ज्ञात हो कि उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति की रिपोर्ट को जोगी ने एक अलग याचिका में चुनौती दे रखी है, जिसमें 12 से अधिक बिन्दुओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने रिपोर्ट को खारिज करने की मांग की है।

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