बिलासपुर। एचआईवी पॉजिटिव बालिकाओं का जीवन बेहतर बनाने के लिये संचालित प्रदेश की एकमात्र संस्था महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों की मनमानी के चलते बंद होने के कगार पर है। विभाग के एक अधिकारी पर अनुदान के लिये रिश्वत मांगने का आरोप लगाये जाने के बाद कोई कार्रवाई तो हुई नहीं बल्कि इसके बदले में संस्था पर लगातार दबाव बनाकर बालिकाओं के भविष्य के साथ ही खिलवाड़ किया जा रहा है। यह स्थिति तब है जब हाईकोर्ट ने इस मामले में एक बार स्थगन दिया है और कलेक्टर से रिपोर्ट भी मांगी है।

शहर में एचआईवी संक्रमित बालिकाओं का आश्रम ‘अपना घर’ संचालित है। इन बच्चियों को यहां भोजन, आवास, कपड़े के अलावा अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों में शिक्षा दी जा रही है। बीते 11 वर्षों से यह संस्था चल रही है जिसका सन् 2018 में स्थायी लाइसेंस भी ले लिया गया है।

संस्था के संचालक संजीव खट्टर का बचपन बहुत अभाव में बीता। उन्होंने और उनके परिवार के सदस्यों ने एचआईवी पीड़ित बालिकाओं की दयनीय स्थिति को देखकर उनकी सेवा का संकल्प लिया। उनका मकसद सिर्फ यही है कि गरीब परिवार की इन बच्चियों को शिक्षित कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर सकें। खट्टर ने अपने ही मकान को एक संस्था बनाकर इन बच्चियों के आवास के लिये रजिस्टर्ड करा दिया। वे खुद एक बेडरूम वाले किराये के मकान में रहते हैं। समाजसेवियों से उन्हें आर्थिक सहयोग मिलता रहा है पर बीच-बीच में सहायता मिलने में देर हो जाती है।

सन् 2018 में दानदाताओं ने निरन्तर सहयोग करने में असमर्थता जताई तब खट्टर ने महिला बाल विकास विभाग में अनुदान के लिये आवेदन लगाया। विभाग के अधिकारियों ने आकर निरीक्षण किया और सैद्धांतिक रूप से उन्हें अनुदान देने की सहमति दी गई। खट्टर के अनुसार इसके बाद जब वे दफ्तर में पता लगाने गये तो वहां जिला बाल संरक्षण  अधिकारी ने उन्हें बताया कि 58 लाख रुपये की स्वीकृति तो हुई है पर इसके लिये कमीशन देना पड़ेगा। यह रकम 20 प्रतिशत बिलासपुर ऑफिस के लिये होगा और 10 प्रतिशत रायपुर के लिये। खट्टर के अनुसार उन्होंने कमीशन देने से इंकार कर दिया और इस बात की शिकायत उच्चाधिकारियों से कर दी। शिकायत में उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि राशि मौखिक मांगी गई है, इसलिये उनके पास कोई प्रमाण नहीं है। सिर्फ यही प्रमाण है कि उनकी संस्था के लिये राशि स्वीकृत होने के बावजूद जारी नहीं की गई है।

खट्टर ने कहा कि रिश्वत देना उनके उसूल के खिलाफ है। दूसरी बात हमने जो बजट बताया उसका 75 प्रतिशत ही अनुदान के रूप में मंजूर किया गया है 25 प्रतिशत की व्यवस्था उन्हें खुद ही करनी है। इसमें यहां कार्यरत 9 कर्मचारियों का वेतन, मानदेय भी शामिल है। इसमें यदि 30 प्रतिशत कमीशन में दे दिये जायें तो बच्चियों का हक़ मारा जायेगा।

इसके बाद जून 2019 में विभाग द्वारा उन्हें पत्र भेजा गया कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के अंतर्गत प्रावधानों का पालन नहीं किया जा रहा है अतएव यहां पर रह रही बच्चियों को उनके गृह जिलों में वापस भेजा जायेगा। वे महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित आवासों में रहेंगीं। इस पर खट्टर ने कलेक्टर के समक्ष आवेदन लगाया और बताया कि बच्चियां यहां से जाना नहीं चाहती क्योंकि सरकारी आश्रय केन्द्रों की व्यवस्था से वे संतुष्ट नहीं हैं।

इसके बाद कलेक्टर ने डिप्टी कलेक्टर व अन्य अधिकारियों से निरीक्षण कराया । निरीक्षण के दौरान तार की घेराबंदी और कुछ और सीसीटीवी कैमरे लगाने सहित कुछ दूसरी कमियां गिनाई गईं, जिन्हें संचालक ने पूरा कर दिया। इसके बाद नवंबर में महिला एवं बाल विकास विभाग के संचालनालय से अधिकारियों की एक टीम फिर पहुंची, उन्होंने भी निरीक्षण किया। इसके बाद  समय-समय पर महिला बाल विकास विभाग बिलासपुर के अधिकारी निरीक्षण के लिये आते रहे। खट्टर का दावा है कि यहां के कर्मचारियों को निरीक्षण के दौरान भयभीत किया गया जिसके चलते चार लोगों ने इस्तीफा दे दिया। इसके तुरंत बाद संचालक खट्टर के पास नोटिस आई कि संस्था को बंद करना है और जो बच्चे यहां रह रहे हैं उन्हें सरकारी व्यवस्था में शिफ्ट किया जाना है।

संचालक खट्टर इसके खिलाफ हाईकोर्ट चले गये। 27 नवंबर को मामला दायर हुआ। 6 दिसम्बर को बाल संरक्षण समिति के आदेश का हवाला देते हुए पुलिस की गाड़ी लेकर महिला विकास विभाग के अधिकारी ‘अपना घर’ पहुंचे और बिलासपुर जिले की चार बच्चियों को अपने साथ ले जाने लगे। ठीक इसी समय हाईकोर्ट का आदेश आ गया जिसमें हॉस्टल से बच्चियों को ले जाने पर स्थगन दिया गया था। तब महिला बाल विकास विभाग और पुलिस की टीम को वापस लौटना पड़ा। खट्टर के अनुसार इसी आदेश में कलेक्टर से प्रतिवेदन मांगा गया था। इसकी सुनवाई मार्च में होनी थी लेकिन कोरोना संकट के कारण तिथि तय नहीं हो पाई। इधर 19 मार्च 2020 को महिला बाल विकास विभाग की ओर से फिर बताया गया कि कलेक्टर ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है अतएव अपना घर से बच्चियों को हटाना होगा।

संस्था की बच्चियों की उम्र चार वर्ष से 18 वर्ष के बीच है। इनकी संख्या 14 है जिनमें से 12 के माता-पिता नहीं हैं। सभी बेहद गरीब परिवारों से आती हैं। एक बच्ची के पिता जीवित हैं पर उसने दूसरी शादी कर ली है। वह बच्ची को रखने के लिये राजी नहीं है। एक की मां जीवित है पर उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और वह आर्थिक रूप से सक्षम भी नहीं है। बच्ची उसके पास नहीं जाना चाहती।

दरअसल संस्था की कोई भी बच्ची इस जगह को छोड़ने की इच्छा नहीं रखती। उन्होंने विभाग के अधिकारियों को दिये गये अपने बयान में भी यह बात बता दी है। खट्टर ने बताया कि इनमें से किसी भी बच्ची को वे खुद लेने नहीं गये। इन सभी को बाल संरक्षण समिति की सिफारिश पर ही महिला बाल विकास विभाग ने यहां लाकर छोड़ा है। उनकी शिकायत है कि सरकारी आश्रम, हॉस्टल में उन्हें बाथरूम में बंद कर दिया जाता है। खाना अलग बिठाकर दिया जाता है। जबकि स्पर्श से एचआईवी फैलता ही नहीं। उनके लिये हाइजेनिक पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है जो वहां नहीं मिलता। उन्हें दवाओं की तथा मेडिकल सुविधाओं की दिक्कत होती है। सामान्य बच्चों के बीच में उनके साथ भेदभाव किया जाता है। खट्टर ने बताया कि यहां ये बच्चियां स्वस्थ वातावरण में रह रही हैं। उनके मेडिकल और भोजन की यथासंभव बेहतर व्यवस्था की जा रही है। इन्हें सामान्य बच्चों के बीच अच्छे निजी स्कूलों में पूरी फीस देकर पढ़ाया जा रहा है। स्कूल संचालकों को यह बताया गया है कि सभी स्पेशल केयर वाले बच्चे हैं पर सहपाठियों को इसकी जानकारी नहीं दी गई है।

विभाग के अधिकारी लगातार दबाव बना रहे हैं कि बच्चों को छोड़ा जाये पर खट्टर का कहना है कि उनके आश्रम का लाइसेंस जीवित है और कोई भी बच्ची जाने के लिये तैयार नहीं है। हाईकोर्ट में भी उनका केस अभी जीवित है। खट्टर ने कल ही एक आवेदन देकर महिला बाल विकास विभाग से जानकारी मांगी है कि वे किस आधार पर ‘अपना घर’ को बंद करने के लिये कह रहे हैं। कलेक्टर ने यदि कोई आदेश दिया है तो उन्हें दिखाया जाये। खट्टर कहते हैं कि उनका पूरा परिवार इन बच्चियों का भविष्य संवारने में जुटा हुआ है। सरकारी अनुदान मिले तो बहुत अच्छा, लेकिन न मिले तब भी नये सिरे से समाजसेवियों और संस्थाओं से सहयोग लेकर उनकी मदद से इसे संचालित करते रहना चाहते हैं। उन्होंने महिला बाल विकास विभाग की मंत्री, सचिव और अन्य उच्चाधिकारियों को भी ज्ञापन, आवेदन देकर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। फिर भी उन पर खतरा मंडरा है कि किसी भी दिन इन बच्चियों को उनकी इच्छा के विपरीत सरकारी हॉस्टल में शिफ्ट कर दिया जाये और प्रदेश का एकमात्र एचआईवी ग्रसित बच्चियों के लिये संचालित संस्था में ताला लग जाये।

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