जंगल सफारी के दौरान पर्यटक कर रहे परिवर्तन को महसूस, कहा- शोध की जरूरत

बिलासपुर। अचानकमार टाइगर रिजर्व में चराई पर बंदिश है। इसके बावजूद अचानकमार और उससे लगे गांवों के भैंस अभयारण्य में चरते दिखाई देते हैं। इनके मालिकों और पशुओं के बीच के संबंधों पर जुटाई गई जानकारी से यह बात सामने आ रही है कि ये भैंस अब आधी पालतू तो आधी जंगली हो गई हैं। यह गुण अरुणाचल में पाये जाने वाले गायल अथवा मिथुन से मिलता-जुलता है।

वन्यजीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने इस परिवर्तन का मुआयना किया है। वे बताते हैं कि लगभग तीन दशक पहले अचानकमार अभयारण्य में केटल- कैंप या दैहान काफी संख्या में थे। फिर वन्य प्राणियों के संरक्षण की जरूरत को देखते हुए दैहान बंद कराए गए। सभी मवेशी जंगल के बजाय गांव लाए गए लेकिन इनकी चराई और जगह की समस्या खड़ी हो गई। चराई के लिए इन्हें जंगल में छोड़ा जाने लगा। ये भैंस जंगल की घास चरते है। हिंसक जीव बाघ या तेंदुआ बछड़े, गाय या बूढ़ी भैसों का शिकार करती हैं। मजबूत और झुंड में होने कारण भैसों का शिकार कम हो पाता है।

इधर भैंस के दूध की मांग उसमें फैट का प्रतिशत ज्यादा होने के कारण बनी रहती है। इसलिए भैंस इस टाइगर रिजर्व के गांवों में काफी हैं। जो जंगल में निश्चिन्त चराई करती हैं। वन विभाग के अफसरों की नजर में यह चराई नहीं आती। कैटल कैप जब गांव आए तो जगह कम पड़ी, इसलिए दूध बंद करने वाली भैसों को उनके बच्चे के साथ जंगल छोड़ा जाने लगा। ऐसी भैंसे छोटे बड़े समूह में दिन रात जंगल में रहती हैं।

ऐसा ही एक समूह बीते माह सफारी रूट के दौर सड़क पर देखने को मिला जिनके साथ कोई चरवाहा नहीं था। एक भैंस के गले मे घंटी बज रही थी। जानकारी मिली कि ये जंगल में ही रहती हैं पर इनके मालिकों के इनकी विचरण स्थल की जानकारी होती है। जब किसी के प्रसव का समय आता है तो वे या तो खुद अपने घर आ जाती है या फिर चरवाहे ले आते हैं। इस तरह से ये जंगल में भी घुली-मिली हैं और गांवों के गौठान में भी। एटीआर में ऐसे अर्ध जंगली, अर्ध पालूत कितने समूह है इसकी सही जानकारी किसी को नहीं है।

उल्लेखनीय है कि अरूणाचल प्रदेश में मिलने वाला मिथुन भैंस जैसा तो दिखता है लेकिन यह भीमकाय गो-वंशी जीव है। छत्तीसगढ़ के जंगल में इंडियन बाइसन याने गौर इसी तरह का जानवर है। गौर काले रंग का होता है और खुर से घुटने तक का हिस्सा सफेद होता है। मिथुन के शरीर में सफेद या भूरा रंग अधिक होता है। इसे पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश, म्यांमार और चीन के युन्नान प्रान्त में भी पाला जाता है। अरुणाचल प्रदेश का राज्य पशु है। यहां की निशि,अपातानी, गालो आदि जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक व सांस्कृतिक जीवन का मिथुन अभिन्न हिस्सा है। मिथुन अर्ध पालतू जीव है यह जंगल में रहता है औऱ दूध गांव में पशुपालकों के घर देता है। वहां इसका इस्तेमाल खाने में भी करते हैं। इसका दूध गाढ़ा और पौष्टिक होता है। मिथुन की तरह के ही लक्षण और आदत अचानकमार के भैंसों में दिखाई देने लगे हैं। चड्ढा का कहना है कि इस परिवर्तन पर जिज्ञासु लोगों को शोध करना चाहिए।

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