कम होते गिद्ध पर पूरे विश्व में चिंता है और इनको बचाने बढ़ाने के लिए 6 सितम्बर को जागरूकता दिवस मनाया जाता है।

बिलासपुर/प्राण चड्ढा/ गिद्ध प्रकृति के सफाई कर्मी हैं और यह जैव विविधता की महत्वपूर्ण कड़ी हैं, लेकिन मानव की करतूत के कारण ये 90 फीसदी तक खत्म हो गए। गांव के किनारे मृत मवेशी को झुंड में आपसी झगड़ा कर भक्षण करते देखे जाने वाला आम परिदृश्य ही खत्म हो गया, तब इस विशाल पक्षी की कमी पर पर्यावरण और पक्षी प्रेमियों ने चिंता व्यक्त की।
गिद्धों की संख्या में गिरावट का मुख्य कारण मवेशी को दूध बढ़ाने के लिए लगाए इंजेक्शन और दवा को पाया गया। हुआ ये जब ऐसे मवेशी मरते तब उनके शव को खा कर जटायु की किडनी खराब हुई। हार्मोन्स में संतुलन खराब होने की वजह अंडे से बच्चे निकलने बहुत कम हो गए। मृत मवेशियों के मांस में भी इन दवाओं का असर रहा। अब मवेशियों की यह दवा कथित रूप में प्रतिबंधित है।
छतीसगढ़ के अचानकमार के औरापानी की पहाड़ियों, मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क, और बाँधवगढ़ नेशनल पार्क में राजबेहरा के करीब गिद्ध का पर्वत की चट्टानों पर अंतिम ठिकाना है। बांधवगढ़ में किंग वल्चर सहित तीन चार प्रजाति के गिद्ध अभी हैं। गिद्ध जीवित जीवों पर हमला नहीं करता, इसलिए चीतल और गिद्ध के फोटो साथ जमीन पर मिल जाते हैं।
मुझे लगता है, उक्त तीनों वन्य क्षेत्रों में  पशुपालक मवेशियों को दी जाने वाली हानिकारक दवाओं का इस्तेमाल नहीं कर रहे या फिर ये गिद्ध मृत मवेशियों को खाने से बचे रहे हैं। इनकी खुराक में आज भी मृत वन्यजीव ही शामिल हैं। दूसरा यह कि इन जंगल में पहाड़ी चट्टान में इनके सुरक्षित ठिकाने हैं। ये तीनों वन और ठिकाने गिद्ध की ऊंची लम्बी उड़ान के लिए दूर नहीं, इसलिए माना जा सकता है यहां के पक्षी इन ब्रीडिंग के दोष से बचे हैं।
बिलासपुर में, जहां छतीसगढ़ राजस्व मंडल का दफ्तर है वहां पचास साल पूर्व दो जोड़े गिद्ध के घोंसले आकाशनीम के पेड़ पर देखे जाते थे जो हर साल प्रजजन करते थे। इसके बाद शहर के करीब मंगला में ऊंचे देसी आम के कुछ ऊंचे पेड़ों पर इनके स्थायी ठिकाने देखने को मिलता था।
अब बर्ड वाचिंग के दौरान,बिलासपुर के करीब कोपरा,मंगला से कोटा के बीच सफेद गिद्व याने इजिप्शियन वल्चर कभी-कभार दिख जाता है। अब ऊँचे पेड़ तो रहे नहीं पता नहीं ये आशियाँ कहां बनाते हैं?

(प्राण चड्ढा वरिष्ठ पत्रकार व वन्य जीव प्रेमी हैं, फेसबुक वाल से साभार)

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